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19 Mar 2025, Wed

डॉ अशफाक़ अहमद

लखनऊ, यूपी
राजनीतिक गलियारों में आजकल ये चर्चा ज़ोरो पर है कि बीएसपी से निष्कासित किए गए सीनियर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। चर्चा सिर्फ यही नहीं है, बल्कि कई न्यूज़ चैनलों और अखबारों ने ये भी दावा कर दिया है कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी समाजवादी पार्टी के आगरा में होने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल होंगे। ऐसा कहा जा रहा है कि इसके लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हरी झंडी दे दी है। दरअसल इस चर्चा को सिरे से खारिज इसलिए नहीं किया जा सकता है कि न तो समाजवादी पार्टी की तरफ से और न ही नसीमुद्दीन सिद्दीकी की तरफ से अभी तक स्पष्ट तौर पर इस खबर का खंडन किया गया है। अगर ऐसा हुआ तो क्या समाजवादी पार्टी को इससे फायदा होगा या फिर नसीमुद्दीन सिद्दीकी को। चर्चा इस बात की भी है कि नसीमुद्दीन के सपा में शामिल होने से आज़म ख़ान की राजनीति पर ज़्यादा असर पड़ सकता है।

शामिल होने के बाद के सवाल
नसीमुद्दीन सिद्दीकी के सपा में शामिल होने की चर्चाओं को अगर सच मान लें तो और ज़ेहन में दो सवाल हैं जिसका ज़िक्र करना चाहुंगा। पहला सवाल ये है कि इससे सपा को क्या फायदा होगा और दूसरा लेकिन सबसे अहम सवाल ये है कि समाजवादी पार्टी में मुस्लिम राजनीति के एकछत्र राज करने वाले आज़म ख़ान की पोजीशन नसीमुद्दीन सिद्दीकी के आने के बाद क्या होगी। ये जगज़ाहिर है कि सपा की कमान अपने हाथ में लेने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी के सीनियर नेताओं या यूं कहें कि अपने पिता मुलायम सिंह यादव के करीबी नेताओं को लगातार किनारे लगा रहे हैं। सीनियर नेताओं के सवाल पर अखिलेश यादव मीडिया से युवाओं के आगे बढ़ाने की बात करते हैं। वो एक नई समाजवादी पार्टी बनाना चाहते हैं जहां सिर्फ उनके बनाए या यूं कहें के की उनके लाए हुए नेता ही पार्टी में रहें।

नसीमुद्दीन के आने से सपा को फायदा ?
पहले सवाल का जवाब यानी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के आने पर समाजवादी पार्टी को क्या फायदा होगा। इसका आंकलन करना अभी जल्दबाज़ी होगी। पिछले कई सालों से राजनीति को देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान का कहना है कि “वैसे नसीमुद्दीन सिद्दीकी सीधे तौर पर जनता से जुड़े नेता कभी नहीं रहे हैं। वो बीएसपी में प्रशासक के तौर पर ज़्यादा जाने जाते रहे हैं। बीएसपी में उनका कद मायावती के बाद आता था। टिकट वितरण से लेकर फंड रेजिंग तक नसीमुद्दीन काफी सक्रिय रहते थे। समाजवादी पार्टी अभी सत्ता से बाहर है, ऐसे में नसीमुद्दीन सिद्दीकी सपा के फायदे का सौदा हो सकते हैं।“ कहने का मतलब ये है कि फिलहाल नसीमुद्दीन सिद्दीकी भले ही बीएसपी से बाहर हो लेकिन राजनीति में उनकी हैसियत को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। वो अपने समर्थक नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ लगातार संपर्क में रह रहे हैं और उनसे राजनीति माहौल के बारे में जानकारी हासिल करते रहते हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी के एक बेहद करीबी नेता ने बताया कि वो अपने समर्थकों के साथ नई पार्टी बनाने से लेकर किसी पार्टी में शामिल होने की बात पर माथापच्ची कर चुके हैं। इस मामले में वो जल्द ही कोई फैसला लेंगे। एक चर्चा ऐसी भी है कि वह कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के संपर्क में हैं। दूसरी तरफ लोग इस चर्चा के पीछे की राजनीति को देखते हैं। उनका मानना है कि नसीमुद्दीन सपा में अपनी हैसियत बनाने को लेकर पर ऐसा कर रहे हैं।

सपा में नसीमद्दीन की हैसियत
सबसे अहम सवाल ये हैं कि नसीमुद्दीन सिद्दीकी के सपा में शामिल होने के बाद उनकी पोजीशन क्या होगी। दरअसल सपा की बात की जाए तो मुस्लिम-यादव वोट के सहारे सत्ता हासिल करने वाली सपा में मुस्लिम चेहरे को तौर पर तो एक दर्जन से ज़्यादा नेता हैं। वहीं नसीमुद्दीन की बात जाए तो बीएसपी में रहते हुए वो पार्टी के हर बड़े फैसले में मायावती के साथ खड़े दिखते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि मायावती के बात पार्टी में उनकी हैसियत थी। सपा में नसीमुद्दीन के जाने से उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण पद मिलना तय माना जा रहा है। ऐसे में पहले से मौजूद मुस्लिम नेता क्या नसीमुद्दीन से तालमेल बैठा पाते हैं। दूसरी तरफ आज़म खान का रुख क्या होगा और वो नसीमुद्दीन सिद्दीकी को लेकर क्या रणनीति अपनाते हैं ये देखना दिलचस्प होगा।

सपा में आज़म खान की हैसियत
दूसरी तरफ पार्टी में अगर बात कद्दावर नेता आज़म ख़ान की जाए तो अब तक सपा में हर बात उन्ही से शुरु होकर उन्हीं पर खत्म हो जाती रही है। दरअसल समाजवादी पार्टी के गठन से लेकर अखिलेश यादव की ताजपोशी के दिन तक आज़म ख़ान की तूती बोलती थी। मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव के सीएम बनने के बाद भी आज़म ख़ान का जलवा बरकरार रहा। मुस्लिमों से जुड़े सरकार के हर कार्यक्रम और योजनाओं में आज़म खान कई मौजूदगी ज़रूरी रहती थी। चर्चा तो यहां तक थी कि आज़म खान की गैर-हाज़िरी में की सरकारी कार्यक्रम रद्द भी हुए। सपा सरकार के आखिरी साल में पिता-पुत्र की जंग में आज़म खान के सामने धर्मसंकट खड़ा हो गया कि वह किससे साथ नज़र आएं। दरअसल इस जंग के न सिर्फ सपा को सत्ता से दूर कर दिया बल्कि सैकड़ों नेताओं का कॉरियर भी खत्म हो गया।

आज़म ख़ान के रहते पार्टी में की दूसरी मुस्लिम लीडरशिप कभी उभर नहीं पाई। वैसे तो पार्टी में एक दर्जन से ज़्यादा मुस्लिम नेता है जिन्हें ज़िम्मेदारी भी कई मिली है पर जब भी किसी मुस्लिम मसले की बात होती है तो सिर्फ पार्टी की तरफ से आज़म खान ही सामने आते रहे हैं। दरअसल प्रदेश की मुसलमानों के बड़े मदरसे या फिर मुस्लिम धर्मगुरुओं की बात करें तो आज़म खान का उनसे रिश्ता हमेशा बेहतर रहा है। यहीं वजह रही है कि सपा को इसका फायदा भी मिलता रहा है।

अखिलेश की नई सपा
सपा अब सत्ता से बाहर है। अखिलेश यादव पार्टी को नये सिरे से खड़ा कर रहे हैं। वो पुराने नेताओं से ज़्यादा युवाओं पर भरोसा जता रहे हैं। दूसरी तरफ मुस्लिम वोट के बगैर सपा सत्ता वापसी की कल्पना नहीं कर सकती। अखिलेश यादव क्या अपने पिता के करीबी रहे आज़म ख़ान पर उतना भरोसा करेंगे या फिर पार्टी में शामिल होने के लिए तैयार नसीमुद्दीन सिद्दीकी को आगे रखेंगे। ऐसे में सबसे अहम सवाल ये उठ रहा है कि पार्टी आज़म ख़ान और नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बीच समन्वय कैसे बनाएगी। अगर नसीमुद्दीन सिद्दीकी सपा में शामिल होते हैं तो इस असर लोक सभा के 2019 के चुनाव में ही देखने को मिलेगा। अब ये तो वक्त बताएगा कि उसे नसीमुद्दीन सरीखे नेताओं से कितना फायदा मिलेगा। पर सत्ता वापसी का ख्वाब देख रही सपा अपने दरवाज़े हर दल के नेताओं के लिए खोल दिए हैं। दरअसल सपा अब छोटी-छोटी चीजों को बटोरकर महल बनाने का सपना देख रही है। अब ये तो आने वाला वक्त बताएगा कि ये महल की ताबीर हकीकत में कब बदलती है।