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19 Mar 2025, Wed

14 सौ साल से तीन तलाक, इस पर पूरा भरोसा: पर्सनल लॉ बोर्ड

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट में चौथे दिन भी तीन तलाक पर सुनवाई जारी रही। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपनी दलील में कहा है कि ट्रिपल तलाक 14 सौ सालों से हैं और हमारी इसमें पूरी आस्था है। जहां आस्था की बात हो तो फिर उसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का सवाल ही नहीं उठता। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट में इस मसले पर लगातार सुनवाई हो रही है। यह सुनवाई चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई में 5 जजों की संविधान पीठ कर रही है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि तीन तलाक 637 ईसवी से है। इसे गैर-इस्लामिक बताने वाले हम कौन होते हैं? मुसलमानों में ये 14 सौ साल से है। यह मुसलमानों की आस्था का मामला है। अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक भी आस्था का मामला है। ऐेसे में इसकी संवैधानिक नैतिकता और समानता का सवाल ही नहीं उठता।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी हमारे पास वक्त कम है। इसलिए तीन तलाक पर ही सुनवाई होगी। बहुविवाह (पॉलीगैमी) और हलाला पर बाद में सुनवाई होगी। कोर्ट ने पूछा कि अगर तीन तलाक को खत्म कर दिया जाता है तो किसी भी मुस्लिम पुरुष के लिए क्या तरीके मौजूद हैं? इसके जवाब में सरकारी वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को अमान्य या असंवैधानिक करार देता है तो मुस्लिमों में शादी और डिवोर्स को रेगुलेट करने के लिए केंद्र सरकार नया कानून लाएगी।

सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ में सुनवाई चल रही है उसमें चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं। इस बेंच की खासियत यह है कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म को मानने वाले जज शामिल हैं। पीठ तीन सवालों के जवाब तलाश रही है। पहला- इनमें क्या तीन तलाक और हलाला इस्लाम के जरूरी हिस्से हैं या नहीं? दूसरा- तीन तलाक मुसलमानों के लिए माने जाने लायक मौलिक अधिकार है या नहीं? और तीसरा- क्या यह मुद्दा महिला का मौलिक अधिकार हैं? इस पर आदेश दे सकते हैं?