वरिष्ठ पत्रकार अहमद अज़ीम की फेसबुक वाल से
नई दिल्ली
*सर्वे से सामने आई तीन तलाक़ की हक़ीक़त, ऐसे मामले बहुत कम*
देश के जाने माने अर्थशास्त्री, स्कॉलर और सच्चर कमेटी के मेम्बर सेक्रेटरी रह चुके डॉ अबू सालिह शरीफ की निगरानी में हुई रिसर्च से तलाक और तीन तलाक़ पर कई अहम जानकारियां निकल कर सामने आई हैं। सर्वे दिल्ली की संस्था “सेन्टर फ़ॉर रिसर्च एंड डायबिटीज इन डेवलपमेंट पालिसी” ने किया था। ये ऑनलाइन सर्वे देश भर में 20,671 लोगों में किया गया जिनमे से 16,860 पुरुष हैं और 3,811 महिलाएं शामिल थी। ये सर्वे मार्च से मई महीने के दौरान किया गया है।
इस सर्वे में…
- मुसलमानों में सिर्फ एक फीसदी से कम मामले तीन तलाक़ के पाये गये।
- 36.2 फीसदी मामलों में तीन महीनों में अलग अलग तलाक़ दी गई।
- 24.7 फीसदी मामलों में तलाक़ दारुल क़ज़ा के फैसलों से हुए।
- 21.1 फीसदी तलाक़ कोर्ट/नोटिस से हुए।
- 16.9 फीसदी मामलों में तलाक़ एनजीओ/पुलिस/बिरादरी पंचायत के ज़रिए हुए।
- बाक़ी तलाक़ का ज़रिया दूसरी वजह थीं जिनमें 0.77% मामलों में ही फौरन तीन तलाक़ शामिल है।
- नशे की हालत में दिए गए तलाक़ के मामले सिर्फ 0.88% ही पाये गये।
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन का सेम्पल इससे काफी छोटा था और उससे डॉ शरीफ जैसा कोई बड़ा स्कॉलर भी नहीं जुड़ा था। मगर उसमें भी एक लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ फैज़ान मुस्तफा के मुताबिक़ तीन तलाक़, टेलीफोन या ईमेल से दिये गये तलाक़ की तादाद बहुत कम पाई गई।
इस रिसर्च का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि ज़्यादातर तलाक़ रिश्तेदारों के दबाव में हुए।
(अहमद अज़ीम दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार है और न्यूज़ चैनल आज तक से जुड़े हैं)