यूपी सरकार की कैबिनेट बैठक में जिस मदरसे को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए अनुदान सूची पर लिये जाने का निर्णय लिया गया, दरअसल वह मान्यता प्राप्त मदरसा है ही नहीं। बीते मंगलवार 17 मई को हुई कैबिेनट बैठक में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से लाये गये एक प्रस्ताव पर मुहर लगी। मऊ के रहीमाबाद के मदरसा इस्लामिया सफीनतुल हैदाया की मान्यता एक महीने पहले ही मानकों को पूरा न करने की वजह से निरस्त कर दी गयी थी। मगर विभाग के जिम्मेदारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और कैबिनेट में बगैर इस मदरसे की मान्यता निरस्त करने की जानकारी दिये इसे अनुदान सूची पर लिये जाने का प्रस्ताव मंजूर करवा लिया गया।
अब कोई भी अधिकारी इस पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। यह भी पता चला कि 17 मई को कैबिनेट के इस फैसले के बाद 19 मई को इस मदरसे की प्रबंध कमेटी ने अदालत से मान्यता निरस्त किये जाने पर ‘स्टे’ भी हासिल कर लिया। मगर अब इस ‘स्टे’ का भी लाभ इस मदरसे को नहीं मिल सकता क्योंकि मान्यता निरस्त होने के एक माह बाद कैबिनेट में बगैर इस मदरसे की मान्यता निरस्त किये जाने की जानकारी दिये प्रस्ताव पारित करवाया गया। अब यह पूरा मामला जांच के दायरे में आ गया है।
इसी तरह महाराजगंज के मदरसा अरबिया अताउल रसूल सिसवा बाजार के चार शिक्षकों को अदालत में तीन-तीन याचिकाएं विचाराधीन होने के बावजूद इनके बकाया वेतन भत्ते का 2 करोड़ 71 लाख रुपये का भुगतान करवा दिया गया। सवाल यह उठाया जा रहा है कि अगर यह शिक्षक अदालत में मुकदमा हार गये तो फिर इनसे इतनी भारी रकम की वसूली कैसे करवायी जाएगी। मदरसे के प्रबंधक आशिक अली राईनी ने इस बारे में प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री धर्मपाल सिंह को हाल ही में शिकायती पत्र भेजा है।
उ.प्र.मदरसा शिक्षा बोर्ड चेयरमैन डा.इफ्तेखार अहमद जावेद ने बताया कि ‘यह दोनों मामले शासन स्तर के हैं। मदरसों के मामले हैं और काफी गम्भीर हैं इसलिए मदरसा बोर्ड के चेयरमैन के नाते हमने शासन से इन दोनों मामलों की रिपोर्ट मंगवाई है। रिपोर्ट मिलने पर उस पर विचार करके समुचित निर्णय बोर्ड द्वारा लिया जाएगा।