काशी में 7 जुलाई से होने वाला तीन दिवसीय ‘राष्ट्रीय शिक्षा समागम’ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अमल में लाने के लिए मील का पत्थर होगा। नई शिक्षा नीति को पूर्ण रूप से अमल में लाने के लिए अब तक किए गए कार्यों की समीक्षा की जाएगी। वहीं भावी रणनीति के निर्धारण के साथ बीते दो वर्षों में चुनौतियों के बीच सफलता की इबारत लिखने वालों की कहानी भी समागम के माध्यम से प्रचारित-प्रसारित की जाएगी। भारत को विश्वगुरु के पद पर पुन: आसीन करने का लक्ष्य लेकर ही नेशनल एजुकेशन पॉलिसी-2020 (एनईपी) की अवधारणा बनाई गई है।
ये बातें यूजीसी के चेयरमैन प्रो. एम. जगदीश कुमार ने बुधवार को बीएचयू के सेंट्रल ऑफिस में पत्रकारवार्ता के दौरान कहीं। प्रो. जगदीश कुमार द्वारा अंग्रेजी में दी गई जानकारियां बीएचयू वीसी प्रो. सुधीर जैन ने हिंदी में अनुवाद कर मीडिया के समक्ष रखीं। प्रोफेसरद्वय ने बताया कि 7 जुलाई को समागम का उद्घाटन अपराह्न पौने तीन बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। इस सत्र में राज्यपाल आनंदी बेन, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का संबोधन होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदा समिति के अध्यक्ष प्रो. के. कस्तूरीरंगन बीज वक्तव्य देंगे। प्रो. जगदीश कुमार ने कहा कि नई नीति के कई महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं। एक तरफ जहां भारतीय शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण पर फोकस है तो दूसरी तरफ भारतीय ज्ञान पद्धति को भी शिक्षा का मुख्य हिस्सा बनाया जा रहा है। शिक्षा मंत्रालय ने विद्यार्थियों की सहूलियत के लिए भारतीय ज्ञान पद्धति प्रकोष्ठ का गठन भी किया है।
बच्चों को विदेश जाने से रोकना भी उद्देश्य
यूजीसी के चेयरमैन ने कहा कि भारत के सक्षम विश्वविद्यालय दूसरे देशों में जाएं और विदेशी विश्वविद्यालय भारत में कैंपस खोलें। भारत से बड़ी संख्या में बच्चे विदेश पढ़ने जा रहे हैं। इसका दोहरा नुकसान देश को हो रहा है। एक तो बच्चों की पढ़ाई के लिए डालर में भुगतान करना होता है। वहीं कम उम्र में विदेशी संस्कृति के संपर्क में आने वाला बच्चा भारतीय संस्कृति से भी कट जा रहा है। विदेशी विश्वविद्यालय भारत आएंगे तो हमें इन दोनों समस्याओं से निजात मिल जाएगी।
जनवरी-2023 से शुरू हो जाएगा डिजिटल विवि
नई शिक्षा नीति में ऐसी व्यवस्था है कि जो छात्र मेरिट पर किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं पा रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उनमें योग्यता नहीं है। उनके लिए यूजीसी ने डिजिटल विश्वविद्यालय की परिकल्पना को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया है। जनवरी 2023 से डिजिटल विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ जाएगा। यहां से मिलने वाली डिग्री और डिप्लोमा भी देशभर के विभिन्न केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों की डिग्री के समकक्ष होगी। किसी भी उम्र का व्यक्ति देश के किसी भी कोने से अपनी सुविधानुसार अध्ययन के लिए समय निकाल सकता है।
नियमों को किया गया है लचीला
विद्यार्थियों के अध्ययन को सुनिश्चित करने के लिए कई नियमों को बहुत लचीला किया गया है। यूजी या पीजी का कोई भी विद्यार्थी एक ही पाठ्यक्रम की पूरी पढ़ाई दो विश्वविद्यालयों से कर सकता है। उदाहरण के तौर पर बीएचयू से पहले साल की पढ़ाई करने के बाद कोई विद्यार्थी किसी कारण से दिल्ली चला जाता है तो वहां जेएनयू में वह उसी पाठ्यक्रम के दूसरे वर्ष में प्रवेश पा सकेगा।
भारतीय भाषाओं के संरक्षण का लक्ष्य
नई शिक्षा नीति के माध्यम से भारतीय भाषाओं के विकास और संरक्षण के लक्ष्य को भी साधने का प्रयास है। प्रो. जगदीश ने कहा कि दुनिया में सबसे अधिक नोबेल पुरस्कार पाने वाले दुनिया के जो टॉप टेन देश हैं उन सभी में संपूर्ण शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही की जाती है। जब दुनिया के दूसरे देश मातृ भाषा में अध्ययन अध्यापन कर सकते हैं तो भारत क्यों नहीं कर सकता?
पढ़ाई के बाद न भागे नौकरी के पीछे
नई शिक्षा नीति का लक्ष्य यह है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद विद्यार्थी नौकरी के लिए भागदौड़ न करें बल्कि खुद ही नौकरियों का सृजनकर्ता बने। इसे ध्यान में रखते हुए कौशल विकास को प्रमुखता दी गई है। शोधों के माध्यम से विभिन्न समस्याओं का समाधान खोजने के वाला पीएचडी स्कॉलर भविष्य में स्वयं ही अपनी खोज को लेकर जनता के बीच जाए। उसे ऐसा करने के लिए समुचित वातावरण और संसाधन सरकार उपलब्ध कराएगी।