तलहा रशादी की फेसबुक वाल से
आज़मगढ़, यूपी
ज़रूरी नही है कि आप हर किसी की हर टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया दें। आपको तय करना होगा कि किसकी, किस बात पर कब और क्या जवाब देना है और देना भी है कि नही देना है। हर क्रिया पे प्रतिक्रिया देंगे तो दुनिया आपका वही हाल कर देगी जो मोहल्ले के उस शख्स का होता है जिसे पूरा मोहल्ला सिर्फ इस लिए चिढ़ाता है कि वो फलाँ बात कहने पर चिढ़ता है।
सोनू निगम ने अगर कुछ ट्वीट कर दिया तो वो ऐसा कुछ नही था जिसका जवाब देना आप पर लाज़मी या फ़र्ज़ था, पर आपने उसे अपनी मज़हबी अना का मसला बना दिया और फिर उन्हें जो चाहिए था वो मिल गया। जो अज़ान मुद्दा ही नही थी वो एक नया मुद्दा बन गयी और रही सही कसर कलकत्ता वाले किसी मौलवी साहब ने निगम का बाल छिलने पर 10 लाख के इनाम का एलान करके पूरी कर दी।
अब सोनू निगम ने खुद ही बाल छिलवा दिए, सफाई भी दे दी और हैप्पी एंडिंग हो गयी। पर अज़ान एक नया मुद्दा बन गयी, मौलवी साहब की सस्ती शोहरत की ख्वाहिश ने पूरे उलेमा का मज़ाक बनवा दिया। उनके बचकाने बयान को मीडिया ‘फतवा’ कह रही है। अब सोचियेगा कि सोनू_निगम की क्रिया से इस्लाम और मुसलमान को ज़्यादा नुकसान हुआ या आपकी जज़्बाती और ग़ैर ज़रूरी प्रतिक्रिया से? बाकी बुज़ुर्गों से सुना है कि “हिकमत” नाम का भी कोई लफ्ज़ होता है।
(तलहा रशादी… राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल के प्रवक्ता हैं)