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10 Oct 2024, Thu

अखिलेश क्यों नहीं बना रहें हैं अल्पसंख्यक सभा का प्रदेश अध्यक्ष!

SAMAJWADI PARTY ALPSANKHYAK SABHA STATE PRESIDENT 1 120421

लखनऊ, यूपी

अशफाक अहमद
2022 में सत्ता की वापसी की ख्वाब देख रही समाजवादी पार्टी अभी अपने संगठन के ढांचे को भी नहीं कर पाई है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार चुनावी दौरे कर रहे हैं और कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण शिविर का आयोजन हो रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर समाजवादी पार्टी अपने संगठनात्मक ढांचे के महात्वपूर्ण अंग अल्पसंख्यक सभा को मज़बूत क्यों नहीं कर रही है। इसके साथ ही एक साल से ज्यादा समय से खाली पड़े प्रदेश अध्यक्ष के पद पर अभी तक किसी की नियुक्ति क्यों नहीं की गई है।

प्रदेश की अल्पसंख्यक राजनीति
यूपी की बात की जाए तो 2014 से पहले तक राजनीति में अल्पसंख्यकों को चुनाव के वक्त बड़ी अहमियत मिलती थी। तकरीबन सभी राजनीतिक दल अल्पसंख्यक बाहुल्य इलाके में रैलियों, सभाओं और रोड़ शो में अल्पसंख्यक नेताओं के आगे रखते थे। ये अलग बात है कि सत्ता पाने के बाद अल्पसंख्यकों के बड़े तबके को ये शिकायत रहती थी कि जनसंख्या के अनुपात में उनकी भागीदारी सत्ता में बहुत कम होती है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक परिदृश्य बदल गया। एक तरफ बीजेपी में रिकॉर्डतोड़ जीत दर्ज की तो यूपी जैसे बड़े राज्य में एक भी मुस्लिम सांसद जीत हासिल नही कर सका। इसके बाद लगभग सभी दल अल्पसंख्यकों से दूरी बनाने लगे। मुस्लिम गठजोड़ से कई बार सत्ता पर काबिज़ रहे सपा और बीएसपी जैसे दल भी अल्पसंख्यकों के कई बड़े मुद्दों पर शांत नजर आए।

2019 में बदला परिदृश्य
लोकसभा चुनाव 2019 में सपा-बीएसपी का गठबंधन हुआ। दोनों दलों के नेता रिकॉर्डतोड़ जीत दर्ज करने का दावा करने लगे। इस बीच जब चुनाव परिणाम आया तो तो सपा और बीएसपी के नेताओं के पैर के नीचे से ज़मीन खिसक गई। दोनों दलों के कई बड़े नेता चुनाव हारे तो दूसरी तरफ इन दोनों दलों को अपनी गढ़ वाली कई सीटों पर बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में सपा-बीएसपी ने वहीं सीटों पर जीत हासिल की जहां मुस्लिमों का वोटों प्रतिशत 30 से ऊपर था। यहीं नहीं इस चुनाव में सपा-बीएसपी गठबंधन से पांच मुस्लिम सांसदों ने जीत दर्ज करके एक बार फिर यूपी में मुस्लिमों की सियासत में अहमियत को दर्ज कराया।

अल्पसंख्यकों पर सभी दलों की नज़र
यूपी में अगर अल्पसंख्यकों की बात करें तो यहां पर अल्पसख्यकों में सबसे ज्यादा आबादी मुस्लिमों की है। उसके बाद सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध हैं। इनकी आबादी बहुत कम है और ये चुनाव की उतना प्रभावित नहीं करते। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर सपा, बीएसपी और कांग्रेस का रुझान मुस्लिमों की तरफ गया। दरअसल आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में करीब 18 फीसदी आबादी मुलिमों की है। बीजेपी समेत सभी दल अल्पसंख्यकों पर अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं। आंकड़ों की बात करें तो पिछलो तीन दशक से मुस्लिमों का बड़ा वोट बैंक सपा के साथ रहा है। उसके बीएसपी, कांग्रेस और बीजेपी के खाते में भी 2 – 4 प्रतिशत वोट जाता रहा है। प्रदेश के कुछ इलाकों में सक्रिय मुस्लिम दलों को भी वोट मिलता रहा है पर ये वोट 4 से 5 फीसदी ही रहा है।

सपा अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष का पद खाली
समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद पिछले एक साल से ज़्यादा समय के खाली पड़ा है। दरअसल 23 अगस्त 2019 को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सपा की प्रदेश यूनिट, ज़िला यूनिट समेत सभी प्रकोष्ठों को भंग कर दिया था। उसके कुछ समय बाद धीरे-धीरे सपा की प्रदेश यूनिट के साथ प्रकोष्ठों में नियुक्ति बदलाव होने लगा लेकिन सपा अल्संख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष व दूसरे पदों पर कोई नियुक्ति नहीं की गई।

पिछली कार्यकारिणी ने किया बेहतर काम
भंग होने से पहले साप अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष हाजी रियाज़ अहमद थे। सपा सरकार में मंत्री रहे हैं। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए एक बेहतर टीम बनाई और संगठन को मजबूत करने के लिए मीटिंग के साथ लगातार दौरे करते रहे। उनकी टीम में यामीन खान, एडवोकेट आज़म खान जैसे संघर्षशील युवा चेहरे भी थे।

दर्जनों नेताओं की है दावेदारी
सपा अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए दर्जनों मुस्लिम नेता दावेदारी पेश कर रहे हैं। दरअसल सपा के कद्दावार नेता आज़म खान के जेल जाने के बाद सपा में मुस्लिमों की लीडरशिप का एक बड़ा गैप दिख रहा है। ऐसे में कई नेता अल्पसंख्यक सभा के सहारे एक तरफ मुस्लिमों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में हैं तो दूसरी तरफ पार्टी में अपना कद बढ़ाना चाहते हैं। अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कई नाम सामने आएं हैं। इनमें पूर्व विधायक एवं सपा महासचिव रह चुके मोहम्मद अरशद खान, सपा के प्रवक्ता अमीक जामई, सपा अल्पसंख्यक सपा के महासचिव रहे यामीन खान, पूर्व मंत्री आबिद रज़ा बरेली, सपा अल्पसंख्यक सभा के उपाध्यक्ष एडवोकेट आज़म खान, पूर्व दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री शकील अहमद का नाम सामने आया है। वहीं सूत्र बताते हैं कि सपा अल्पसंख्यक सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे एक नेता भी इस दौड़ में शामिल हैं वहीं आज़मगढ़ से एक मौजूदा विधायक का नाम भी सामने आ रहा है।

कई नेताओं का पद मिलने का दावा
पीएनएस से बातचीत में कम से कम तीन नेताओं ने दावा किया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वो उनकी ताजपोशी करेंगे। बरेली में सपा के प्रशिक्षण शिविर के वक्त भी एक मुस्लिम नेता ने दावा किया था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष उनके नाम का एलान कर सकते हैं। वहीं एक मुस्लिम नेता ने पीएनएस को बताया कि सपा अध्यक्ष कई बार उनसे कह चुके हैं।

सपा को हो सकता है नुकसान
यूपी में लगभग चुनावी बिगुल बज चुका है। ऐसे में जहां सत्ताधारी बीजेपी संगठन को मजबूत करने के बाद कार्यकर्ताओं के साथ चर्चा कर रही है वहीं सत्ता वापसी का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी अपने वोट बैंक के एक बड़े हिस्से के पार्टी प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष तक नहीं दे पाई है। इस मामले में सपा का कोई भी नेता बोलने के लिए तैयार नहीं है लेकिन पूर्वांचल से जीत दर्ज हासिल करने वाले पार्टी के एक विधायक ने पीएनएस से कहा कि अगर इस जल्द फैसला नहीं लिया गया तो पार्टी को इसका भारी नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल में असदुद्दीन ओवैसी की इंट्री के बाद अल्पसंख्यकों का एक तबका अब सपा से सवाल कर रहा है। ऐसे में सपा अल्पसंख्यक सभा का प्रदेश न होने से पार्टी पूरी तरह से बचाव करने में सक्षम नहीं है। अब देखना ये है कि 2022 में सत्ता में वापसी और 351 सीट पर जीत का ख्वाब देख रहे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव प्रदेश की अल्पसंख्यक सभा का प्रदेश अध्यक्ष कब और किसे बनाने हैं।