नई दिल्ली
आरक्षण के मुद्दे पर पिछड़े और दलित लगातार आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने आरक्षण का लाभ न देने के लिए नया रास्ता चुन लिया है। नीति आयोग ने पिछले दरवाजे से आरक्षण के दायरे से बचने का बनाकर नियमित नियुक्तियों के बजाय बड़ी संख्या में संविदा पर भर्तियां की हैं। ये संविदा के लोग सरकार को नीति के संबंध में दिए जाने वाले राय-मशविरे में महत्पूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। आयोग का कहना है कि संविदा कर्मी आरक्षण के दायरे से बाहर है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में नीति आयोग ने यह स्वीकार किया है कि संविदा पर 46 लोगों को नौकरियां दी गई हैं। इन लोगों का कार्यकाल दो से पांच साल तक का रहेगा। इन सभी पदों पर सेवाएं देने वाले सभी लोगों को मूल वेतन 60 हजार रुपये मासिक समेत अन्य सुविधाएं व भत्ते मुहैया कराए जा रहे हैं। आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि केंद्र सरकार के जीएफआर-2017 के नियम 178 के तहत पेशेवरों की संविदा भर्तियां और परामर्श लिया जाना आरक्षण के दायरे से बाहर है।
नीति आयोग का कहना है कि पेशवरों की संविदा भर्ती से पहले निजी मतभेद के मद्देनजर उनसे एक लिखित स्पष्टीकरण लिया जाता है। साथ ही बी-टेक और एमबीए के डिग्री धारकों को ही मूल रूप से आयोग भर्ती में मौका देता है। सूचना अधिकार कार्यकर्ता मनीष आनंद द्वारा भेजी गई आरटीआई पर नीति आयोग ने यह जवाब दिया है। इसमें उन्होंने कुल पेशेवरों की भर्ती और इन पेशवरों द्वारा 2017-18 में की गई विदेश यात्राओं का ब्योरा मांगा गया था। हालांकि आयोग ने आरटीआई में पूछे गए उस सवाल का जवाब नहीं दिया जिसमें पेशवरों के शिक्षण संस्थानों का ब्योरा मांगा गया था।
सूचना के अधिकार के जवाब में आयोग ने यह भी सूचित किया है कि संविदा पर भर्ती किए गए 46 पेशेवरों का काम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के सरकारी और निजी सम्मेलनों में भाग लेना है। पिछले साल इनमें से सात पेशवर विदेशों में वैश्विक संगठनों के साथ विचार-विमर्श के लिए गए थे। इन पेशेवरों ने रोजगार, कौशल विकास, ऊर्जा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मौसम परिवर्तन और स्वच्छ उर्जा जैसे विषयों पर आयोजित सम्मेलनों में भाग लिया था।