अलीगढ़, यूपी
ईद-उल-अजहा (बकरीद) की रौनक बकरों से ही होती है। हर साल उम्दा नस्ल के बकरे शहर के बाजार, पैंठ की रौनक बढ़ाते हैं। इस बार भी बकरा मंडी जगह-जगह सजी हुई हैं, लेकिन रौनक नहीं है। इसकी वजह है कि बकरों की कीमतों में हुई बेतहाशा वृद्धि, जिससे बकरा मंडी ठंडी पड़ी हुई है। बकरीद को चंद रोज शेष हैं, लेकिन गैर प्रांतों से बकरे के व्यापारी यहां नहीं आए। फिलहाल जो बकरे बाजार में पहुंचे हैं उसमें ज्यादातर देशी, यमुनापारी व आसपास के जिलों से लाए गए हैं। इन बकरों की कीमत 20 से 60 हजार के करीब हैं।
कीमतों की बात करें तो गत वर्ष जिन बकरों की कीमत 15 हजार थी, इस साल उसी तरह के बकरे 20 से 25 हजार में बिक रहे हैं। क्वार्सी पैंठ पर लगने वाली बकरा मंडी के व्यापारियों का कहना है कि ट्रांसपोर्ट व टैक्स के अलावा यहां रुकने, बकरों को चारा आदि देने में जो खर्च आ रहा है उससे बचत बहुत कम रह गई है। बाहर के व्यापारी यहां आने से शायद इसीलिए कतरा रहे हैं। जबकि पिछले वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश तक के व्यापारी यहां आए थे।
कम कीमत के बकरों की ज्यादा मांग
व्यापारियों ने बताया कि आमतौर पर 15 से 20 हजार की कीमत वाले बकरों की ज्यादा मांग है। जो बकरे बाजार में मौजूद हैं, उनकी अधिकतम कीमत 60 हजार तक है। लोगों को उम्मीद है कि बकरों की आवक तेज होगी तो रेट भी घटेगा। हालांकि, व्यापारियों को इसकी उम्मीद कम ही लग रही है। उनका कहना है जिस तरह की आवक है उससे नहीं लगता कि कीमतें घटेंगी।
व्यापारियों के बोल
पिछले बार ही अपेक्षा कीमतें अधिक हैं। बकरों को पालने पर खर्चा ज्यादा आ रहा है। आने-जाने का खर्चा भी है। बाहर के बकरों की आवक इस बार कम है। आसपास के जिलों के ही व्यापारी पैंठ में आ रहे हैं। खर्चा बढऩे से कीमतें इस बार कुछ ज्यादा हैं।