अज़ीम सिद्दीकी
जौनपुर, यूपी
ठंड की शुरुआत होते ही अपने गोद में रंग-बिरंगी प्राकृतिक छटाओं को सजाएं ताल सात समुंदर पार से आने वाले मेहमान पक्षियों के इंतज़ार कर रहे हैं। ऋतु के समय बदलाव से और अत्यधिक बारिश के अनुमान से लोग बताते है कि इस साल ज्यादा मेहमान पक्षियों का आने की उम्मीद है। शीतकाल के दस्तक के साथ ही हज़ारों मील लम्बा सफर तय कर साइबेरियन पक्षियों के अनोखी करलव से क्षेत्र रोमांचित हो जाता है। गुलाबी ठंड की शुरुआत होते ही इस साल में मेहमान पक्षियों का उतरना धीरे -धीरे तालों में शुरू हो चुका है।
इसी के साथ-साथ शिकारी भी तैयार हो गए हैं। वो अपने शिकार को खुलेआम कर रहे है और मांस शौकीनों को महंगे दामों में बेच रहे है। इन मांस के शौकीनों में ज्यादातर सफेदपोश नेता, व्यापारी व बिल्डर बताये जा रहे है। ये नेक्सस शाहगंज और आसपास में खुलेआम काम कर रहा है।
ये मेहमान परिंदे नवम्बर माह से लेकर फरवरी महीने तक अपना डेरा जमाएं रहते है। इन चार महीनों में तालों परिंदों के कोलाहल से सारी कुदरती सुंदरता अपने अन्दर समेट लेती है। अब विदेशी पक्षियों का कोलाहल का गुंजायमान धीरे – धीरे गूँजने लगी है। जिसको पक्षी प्रेमियों का इंतज़ार था। लेकिन अफसोस कि धीरे – धीरे यह समाप्त होता जा रहा है और शिकारी इनका शिकार खुलेआम कर रहे है।
आगमन से पहले ही शिकारी करते है मारने की तैयारी
विकासखण्ड शाहगंज सोंधी क्षेत्र के अंतर्गत स्थित खुदौली गांव के समीप गुजरताल, बेरुख ताल व मनाग सहित अन्य छोटे-छोटे ताल स्थित है। जहां पर भारी संख्या में विदेशी मेहमान पक्षी आते है। और आसानी के साथ इनका शिकारी द्वारा शिकार किया जाता है। लाख उपाय प्रशासनिक उपाय के बाद भी मेहमानों का शिकार थमने का नाम लेता। शिकारी अपने अवैध धंधे के लिए पहले से ही तैयारी में जुट जाते है।
गुजरताल का दस बड़े तालों के रूप में गिना जाता है। यहाँ मछलियां पकड़ने का काम बारह महीने होता है। लेकिन ठंड के मौसम में यहां पहुँचने वाले साइबेरियन पक्षियों का शिकार शिकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है। इससे इनकी अच्छी-खासी कमाई हो जाता है। यहां मांस की मांग ज्यादा होने से काफी महंगे दामों पर साइबेरियन पक्षियों की बिक्री की जाती है। मांस शौकीन इसे बड़े शौक़ से खरीदकर खाते है।
इन जगहों पर रुकेंगे
विदेशों से आने वाले प्रवासी मेहमान पक्षियों का आगमन शुरू हो गया है। ये पक्षी वहाँ डेरा डालेंगे, जहाँ पर इनके पूर्वज (माता-पिता) बसेरा करते आएं है। जानकर बताते है कि ये प्रवासी पक्षी 200 किलोमीटर प्रति घण्टा के रफ्तार से उड़ते है। इनमें ज्यादातर पक्षी एक हज़ार किलोमीटर की लंबी उड़ान बिना रुके तय करते है। इन पक्षियों के लिए यह महीना महाप्रवास का महीना है। इस महीने में विदेशी परिंदों का आगमन होता है।
क्षेत्र स्थित विभिन्न तालों में अपना ठिकाना बनाते है। ये प्रवासी पक्षी साफ वातावरण प्रदूषण रहित तालाबों में जोहड़ों की तलाश करते है। चाहे उनका आकार क्यों न छोटा हो। प्रदूषण की वजह से कई बार ठिकाना बदल लेते है। हमारे क्षेत्र में हज़ारों की संख्या में मेहमान आते है। जिनके आगमन से फ़िज़ा बदल जाती है। वातावरण चह – चहचहाने लगता है। रात को ज्यादा आसानी से आते-जाते समूहों में देखा जा सकता है।
बच्चे पैदा करके वापिस वतन लौट जाते है मेहमान परिंदे
शिकारियों की निशाने से बचने के बाद क्षेत्र के विभिन्न तालों में विचरण करने वाले मेहमानों के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इन परिंदों को ठंडा स्थान बहुत पसन्ददीदा स्थान होता है यही वो अपना ठिकाना बनाकर परिवार का विस्तार करते है। ज्यो ही ठंड शुरू होता है त्यों ही पानी प्रेमी कोमल पक्ष उस तरह अपना रुख करने लगते है और अपने भोजन की तलाश में जुट जाते है। यही ये मादा पक्षी गर्भवती होती है। यहाँ पहुँचते ही कुछ दिनों बाद अण्डे देती है। लगभग 10 जनवरी के आस – पास अंडों से बच्चे निकल जाते है। और लगभग 15 फरवरी के आसपास ये मेहमान अपने बच्चों के साथ वतन को वापिस लौट जाते है। यह शिकारी के निशाने से बचने के बाद कि मेहमानों की प्रक्रिया है।
मेहमान परिंदों के सुरक्षा के लिए नही है कोई ठोस इंतज़ाम
क्षेत्र स्थित विभिन्न तालों में विचरण और निवास करने वाले विदेशी मेहमानों को शिकारी निर्बाध रुप से व्यापक रूप में शिकार कर रहे है। जानकर सूत्रों ने बताया कि ये शिकारी रात में अपना शिकार करते है। शिकार करने से पहले ही मांस के शौकीन पहले से आर्डर कर मांग किये रहे है उसी हिसाब से शिकार करके निर्धारित स्थान पर पहुँचा देते है। एक साइबेरियन की दम बाजार में 500 से 700 रुपये तक बताये जाते है।
इन मेहमानों के लिए जिम्मेदारों द्वारा कोई ठोस इंतज़ाम नहीं किया गया है। ना ही शिकारी के ऊपर कोई नकेल कसा गया है। जिससे शिकारियों के हौसले बुलन्द है और धड़ल्ले से शिकार कर रहे है। यदि जिम्मेदारों द्वारा इन मेहमानों के बचाव के लिए ठोस उपाय होता तो शायद खामोशी के नींद नहीं सुलायें जाते है। ऐसा होता रहा तो एक समय ऐसा आएगा कि ये ताल से विदेशी परिंदों के गुंजायमान से सून हो जाएगा और मेहमान हमेशा-हमेशा के लिए रूठ जाएंगे।