यूपी में ओवैसी की सियासत और ताकत

डॉ अशफाक अहमद

लखनऊ, यूपी
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सदर और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी पर अपनी निगाहें जमा दी हैं। ओवैसी 2017 के विधान सभा चुनाव से पहले यूपी में अपनी पार्टी को मज़बूती दे रहे हैं। पिछले दिनों सांसद ओवैसी दो दिन के दौरे पर पूर्वी यूपी में थे। सांसद ओवैसी मुस्लिम बाहुल्य इलाके अम्बेडकरनगर के टांडा गए। यहां उन्होंने रैली की परमिशन न मिलने रोड किया तो दूसरी तरफ बलरामपुर में रैली की। इस दौरान उन्होंने निशाने पर सभी दलों को लिया लेकिन सपा पर वो ज़्यादा ही हमलावर दिखे। बलरामपुर के पंचपेड़वा रैली में ठीक-ठाक भीड़ जुटी थी। सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने मुसलमानों के साथ होने वाली नाइंसाफ़ी और दंगों का ज़िक्र किया और एकजुट होने की बात कही तो दूसरी तरफ उन्होंने दलितों के मुद्दे भी उठाए।

यूपी में मुसलमानों की हैसियत
सरकारी आंकड़ों की बात करें तो यूपी में मुसलमानों की आबादी करीब 18 फीसदी है और यूपी में मुसलमान निर्णायक मतदाता हैं। राज्य में अभी तक मुसलमान समाजवादी पार्टी का सबसे अहम वोटबैंक रहा है। समाजवादी पार्टी गलती से भी ऐसा कोई मौका नहीं देना चाहती जिससे उसका ये वोटबैंक दूर छिटक जाए। समाजवादी पार्टी से नाराज़ होने वाले मुसलमानों की दूसरी पसंद बीएसपी है। इन दोनों दलों के बाद कई छोटी मुस्लिम पार्टियां भी मुसलमानों के वोट बैंक में सेंध लगाती रहीं हैं। ओवैसी इन वोटरों में सेंध लगाने का दम ज़रूर रखते हैं। ओवैसी की उम्मीदों को परवाज़ उत्तर प्रदेश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति से भी मिल रही है। यूपी में सत्तासीन समाजवादी पार्टी में आपसी खींचतान जारी है। एक तरफ पिता मुलायम सिंह यादव पार्टी में अपनी पकड़ को मज़बूत कर रहे हैं तो सीएम अखिलेश अपनी युवा टीम के साथ आरपार करने के मूड़ में दिखाई दे रहे हैं। पारिवारिक गुटबाज़ी के बीच कार्यकर्ता की स्थिति शून्य जैसी हो गई है। चुनावों के ठीक पहले इस तरह की खींचतान से उसके मतदाताओं में निराशा फैली है। ज़ाहिर है ओवैसी इस मौजूदा स्थिति का फायदा उठा सकते हैं।

असदुद्दीन ओवैसी की शख्सियत
मुल्क में अगर ताकतवर मुस्लिम नेताओं की बात की जाए तो तेलंगाना की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहदूल मुसलीमीन के सदर असदुद्दीन ओवैसी फिलहाल सभी से आगे हैं। राज्य स्तर की पार्टी होने के बावजूद ओवैसी की लोकप्रियता देशभर में फैले वोट बैंक पर साफ तौर पर देखी जा सकती है। ओवैसी के उठाए मुद्दों पर देश की राजनीति में हलचल पैदा कर देते हैं और इन मुद्दों पर ओवैसी के सपोर्ट में देशभर से आवाज़ सुनाई देने लगती है। ओवैसी एक ऐसे मुस्लिम नेता हैं जो विवादों में रहकर पूरे देश के मुस्लिम वोट बैंक तक अपना संदेश पहुंचा लेते हैं। सांसद ओवैसी अपने तर्कों और हाज़िर जवाबी के लिए मशहूर हैं। चाहे पार्लियामेंट में मुसलमानों और दलितों से जुड़े मुद्दों को ज़ोरदार तरीके से उठाने की बात हो या फिर पाकिस्तान और आईएस के खिलाफ खुलकर बोलने की बात हो असदुद्दीन ओवैसी हमेशा अपनी बात बहुत ही बेबाकी और सीधे लफ्ज़ों में रखते हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि असदुद्दीन ओवैसी हर उस पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में खतरे की घंटी हैं जिन्हें मुसलमानों के वोट मिलते रहे हैं। वजह मुसलमान नौजवानों में उनकी बढ़ रही लोकप्रियता है। संसद में लगातार मुसलमानों के मुद्दे इसलिए उठाते हैं ताकि उनके बीच उनका नाम और ऊंचा हो सके। एक सच्चाई ये भी है कि असदुद्दीन ओवैसी की अपनी शख्सियत भी है। अभी तक सूबे में जिनते भी नेताओं ने मुसलिम हितों की राजनीति की है, ओवैसी उनमें सबसे कुशल, पढ़े-लिखे, सधे और तार्किक मालूम पड़ते हैं। अपनी इसी कला से वे बड़ी संख्या में मुस्लिमों को अपने पक्ष में कर सकते हैं। राजनीतिक रैलियों की बात करें तो ओवैसी की तकरीरें धर्म से शुरु होकर राजनीतिक मुद्दों तक पहुंचती है। यहीं वजह है कि अपनी लीडरशिप तलाश रहा मुस्लिम नौजवानों का एक बड़ा तबका उन्हें अपना नेता मानता है। दरअसल पिछले कई सालों से मुसलमानों के साथ सरकार की बेरुखी की वजह से मुस्लिम नये रास्ते तलाश रहा है और एमआईएम इस मौके का राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है।

ओवैसी का यूपी प्लान
एमआईएम सदर ओवैसी काफी समय से सपा और बीजेपी के साथ अंदरुनी गठजोड़ की बात कहते रहे हैं। यहीं नहीं ओवैसी समाजवादी पार्टी पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह मुसलमानों को बीजेपी का डर दिखाकर वोट हासिल कर रही है। ओवैसी यूपी के हर उन शहरों का दौरा करने की कोशिश कर रहे हैं मुसलमान दंगे या किसी ना किसी रूप में पीड़ित हैं। ज़ाहिर है यह उनकी चुनावी रणनीति का हिस्सा है और उन्हें यह भी पता है कि अगर उन्हें उत्तर प्रदेश में पांव जमाना है तो मुस्लिम मतदाता के मन में जगह बनानी होगी। ओवैसी की रणनीति है कि अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव तक वह ऐसी जगहें लगातार जाते रहें जहां मुसलमानों पर ज़ुल्म हुआ हो। पिछले साल बकरीद के मौके पर ओवैसी दादरी के बिसाहड़ा भी गए थे जहां गोहत्या की अफ़वाह फैलाकर अखलाक अहमद की हत्या कर दी गई थी।

ओवैसी मुलायम सिंह के संसदीय क्षेत्र आज़मगड़ में भी कई बार रैली की कोशिश की। उन्होंने वहां एक गांव गोद लेने का ऐलान किया था जिसे बटला हाऊस एनकाउंटर के बाद आतंक का गढ़ कहकर बदनाम कर दिया गया है। दरअसल यूपी में एमआईएम से सबसे पहले जुड़ने वाली पहली टीम इसी ज़िले की थी। ओवैसी की ये सारी क़वायद इसलिए है ताकि यूपी में अपनी राजनीतिक ज़मीन तैयार की जा सके। अपनी रैली में ओवैसी सिर्फ मुसलमानों की बात नहीं करते बल्कि वो लगातार दलितों के साथ हो रहे उत्पीड़न और नाइंसाफी की भी ज़िक्र करते हैं। महाराष्ट्र में एमआईएम का मुसलमान और दलित गठजोड़ का जो फॉर्मूला अब लोकप्रिय हो रहा है, वहीं ओवैसी इसका प्रयोग यूपी में करना चाहते हैं।

दंगों की राजनीति
असदुद्दीन ओवैसी का जब भी यूपी दौरा होता है वो अपनी स्पीच में दंगों का जिक्र ज़रूर करते हैं। मुज़फ्फरनगर से लेकर ताजा बिजनौर की घटना तक। ओवैसी बिजनौर जाना चाहते थे पार्टी ने इसके लिए बाकायदा इज़ाजत मांगी लेकिन बिजनौर प्रशासन ने ओवैसी को ज़िले में घुसने या कार्यक्रम करने की इजाज़त देने से मना कर दिया। ये अलग बात है कि बिजनौर गोलीकांड के बाद अखिलेश सरकार ने कार्रवाई में फुर्ती दिखाई। सीएम अखिलेश ने गृह सचिव मणि प्रसाद मिश्रा और कानून व्यवस्था के एडीजी दलजीत चौधरी को फौरन हेलीक़ॉप्टर से भेजा। सरकार ने एक सब इंस्पेक्टर समेत दो पुलिसकर्मियों का निलंबन किया जो वारदात के वक्त मौके पर मौजूद थे। पीड़ितों को 20-20 लाख रुपए बतौर मुआवज़े का ऐलान भी हो गया। चुनाव की आहत की वजह से सपा सरकार ने बिजनौर कांड पर तेजी से कार्रवाई की। राजनीति के माहिर खिलाड़ी ओवैसी मौजूदा सपा सरकार से मुज़फ्परनगर से लेकर बिजनौर तक का हिसाब मांगते हैं। वो दादरी के एखलाक की हत्या पर इंसाफ मांगते हैं तो दूसरी तरफ वो गोरखपुर के सांसद योगी को कुला चैलेंज करते हैं। दरअसल ओवैसी को पता है कि प्रदेश में मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग दंगों और हिंदूवादी संगठनों के आंतक से परेशान हैं इसलिए वो ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं।

ओवैसी की चुनावी रणनीति
असदुद्दीन ओवैसी जब भी यूपी के दौरे पर होते हैं तो वे सपा पर ज़ोरदार हमला करते हैं। इसके अलावा वे कांग्रेस, बीजेपी पर भी निशाना साधते हैं। ये अलग बात है कि ओवैसी बहुजन समाज पार्टी पर कम हमलावर होते हैं। इसकी वजह साफ है कि ओवैसी एक तरफ दलितों को अपनी तरफ खींचना चाहते हैं तो दूसरी तरफ बीएसपी से गठबंधन का रास्ता खुला रखना चाहते हैं। हालांकि मायावती की अपने वोटबैंक पर हमेशा पकड़ मज़बूत रही है और बीएसपी ने ओवैसी और सपा की उम्मीदों पर पानी फेरने के लिए 100 से ज़्यादा मुसलमानों को विधानसभा का टिकट देने का ऐलान किया है।

मुसलमान और दलित गठजोड़ फार्मूले पर यूपी के फैज़ाबाद की बीकापुर सीट के उपचुनाव में उन्होंने एक दलित को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाकर 11 हजार वोट हासिल किया था। कांग्रेस यहां उनसे पीछे थी। ओवैसी की राणनीति का सबसे बड़ा ख़तरा ध्रुवीकरण है क्योंकि अगर बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण का ट्रेंड दिखने लगा तो हर लिहाज़ से ओवैसी की राजनीति मुसलमानों के लिए घाटे का सौदा होगी।

विधान सभा चुनाव के लिए रणनीति
यूपी में विधान सभा चुनाव 2017 में होना है। सांसद असदुद्दीन ओवैसी महारष्ट्र की तरह यूपी में भी धमाकेदार इंट्री चाहते हैं। हालंकि बिहार चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली दबी ज़ुबान में स्वीकार करते हैं कि यूपी में पार्टी चुनिंदा सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी। दरअसल पार्टी यूपी की मुस्लिम बहुल्य सीटों पर नज़र गड़ाए हुए हैं और पार्टी ने इन सीटों पर सर्वे कराकर चुनाव की तैयारी शुरु कर दी है। इन पर नज़र रखने के लिए हैदराबाद की एक टीम यूपी में डेरा डाले हुए हैं। शौकत अली के मुताबिक पार्टी अपनी पूरी एनर्जी और टीम का इस्तेमाल चुनिंदा सीटों पर करके बेहतर रिजल्ट की उम्मीद कर रही है। पार्टी का सोशल मीडिया सेल काफी मज़बूत है और इसके सहारे वो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ पार्टी गठबंधन के लिए भी लगातार कोशिश कर रही है। गठबंधन के लिए पार्टी की पहली पसंद बीएसपी है। पार्टी के सूत्रों के मुताबिक बीजेपी, कांग्रेस और सपा से पार्टी कोई गठबंधन नहीं करना चाहती।

अन्त में…
आंध्र प्रदेश और अब तेलंगाना में पिछले पांच दशक से राजनीति कर रही एमआईएम ने महाराष्ट्र चुनाव से अपने पैर दूसरे प्रदेशों में फैलाना शूरू किया। महाराष्ट्र के बाद बिहार, यूपी और अब देश के कई राज्यों में एमआईएम सक्रिय हैं। एमआईएम के खाते में भले ही महाराष्ट्र को छोड़कर ज़्यादा सफलता नहीं आई लेकिन ये भी सच है कि आज एमआईएम एक राजनीतिक हैसियत के रूप में की प्रदेश में सक्रिय है। इसका श्रेय सिर्फ असदुद्दीन ओवैसी को ही जाता है। ओवैसी अब यूपी में सक्रिय हैं और विधान सभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। चुनाव का रिजल्ट चाहे जो हो लेकिन तना तो तय है कि ओवैसी की यूपी में इंट्री ने कई दलों को परेशान कर रखा है। यहीं नहीं कई पार्टियां तो अब मुसलमानों को लेकर अपनी रणनीति बदलने पर मज़बूर हैं। अब देखना ये है कि ओवैसी की राजनीति का यूपी के चुनाव में कितना असर पड़ता है।