निज़ामुद्दीन
नई दिल्ली,
कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि NRC और CAB के लागू होने से सिर्फ और सिर्फ देश में मुस्लिम समुदाय को ही अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। और साबित न कर पाने की दशा में देश बदर होना पड़ेगा या फिर डिटेंसन सेंटरों में नरकीय जिन्दगी गुजारने होगी। और जी-जी कर मरना होगा, बाकी दूसरे लोग बचे रहेंगे। उनपर कोई आंच नहीं आयेगा। नार्थ ईस्ट के प्रांतों में मुस्लिम जनसंख्या कम है, फिर भी वहां के गैर मुस्लिम समुदाय को इन काले कानूनों से क्या नुकसान होगा इसको वह समझ रहे हैं, इसलिए जान की बाजी लगाकर इसका विरोध कर रहे हैं।
आसाम और वेस्ट बंगाल में भी इन अमानवीय कानून के विरोध में मुसलमानों के साथ साथ बड़ी संख्या में गैर मुस्लिम भी लड़ते नजर आ रहे हैं साम्यवादी विचार के लोग अपनी विचारधारा की बुनियाद पर जहां भी मजबूती से मोर्चाबन्दी किये हुये हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि जिस फासीवादी एजंडे की आपूर्ति के लिए CRC और CAB जो अब संविधान का Act बन चुका है, लाया गया है उसमें उनकी विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं है।
दक्षिण भारत के प्रांतों विशेष रूप से तामिल भाषी क्षेत्रों में यह कहा जाता रहा है कि श्रीलंकाई तामामिल मूल के लोग अपना देश छोड़ कर भारत में आकर बस गये हैं CAA 2019 में उनका कोई स्थान नहीं है उन्हें भी इसके विरोध में खड़ा होना ही पड़ेगा तमिलनाडु की लीडिंग क्षेत्री पार्टी डीएमके ने अपने क्षेत्र की जनता के रूख को भांप कर अब इसके संकेत दे भी दिए हैं।
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल हमेशा सत्ता की टोह में रहते हैं और अपनी राजनैतिक आकाक्षाओं की आपूर्ति के लिए यह कब कहां पलटी मार दें कुछ तय नहीं होता है। मूलरूप से यह आरएसएस की कभी ए टीम हुआ करती थी लेकिन आज उसकी बी टीम हो चुकी है। इतनी डरी सहमी हुई है कि अपनी उपस्थित भी दर्ज नही करा पा रही है। वास्तव में CAB इन्हीं पार्टियों की कमजोरियों, ढुलमुल नीतियों और अपनी पार्टी के सांसदों पर कमजोर पकड़ के चलते राज्यसभा में सत्ता पक्ष के अल्पमत में होने के बावजूद भी पास हुआ है।
आबादी के अनुपात में देश में SC, ST और OBC की जन संख्या सब से ज्यादा है। जो इस समय धार्मिक भावनाओं में इतना भावुक हो चुका है कि अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की भी कोई परवाह नहीं है। मुस्लिम समुदाय के प्रति इनके मन में इतनी नफरत भर दी गई है कि इन्होने NRC और CAB से इनको क्या नुकसान होगा इस पर इनके नेताओं, सामाजिक व राजनैतिक संगठनो ने गंभीरतापूर्वक विचार भी नहीं किया। वरना आज CRC और CAB के विरोध में आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात समेत सभी हिन्दी भाषी प्रान्तों में इस काले कानून के विरोध में अकेला मुसलमान या फिर साम्यवादी और मानवाधिकार कार्यकर्ता ही नहीं खड़े नजर आते।
इन वर्गों के नेता और उनकी राजनैतिक पार्टियां इतने गंभीर मुद्दे जिसमे देश की एकता, अखंडता, देश का संविधान व देश का भविष्य सब दांव पर लगा हो इतने उदासीन दिखाई देते कि जैसे वास्तव में उन्होंने मान लिया है कि यह सिर्फ मुसलमानों का मामला है। इसीलिए जिस तरह से अब तक मॉब लिंचिंग, बेकसूर मुस्लिम नौजवानों की गिरफ्तारी, मुसलमानों के एनकाउंटर आदि मामलों में उदारवादी और अपने राजनैतिक लाभ और हानि को देखते हुए अपनी नीतियां तय करते चले आये हैं। इस मामले को भी इसी दृष्टिकोण से देखा है। जिसकी झलक लोकसभा और राज्यसभा में दिखाई ही पड़ रही है। और अब जब यह सड़क पर आ चुकी है तब इनका मूक दर्शक बने रहना इनकी उदासीनता को दर्शाता है।
SC, ST, और OBC वर्ग ऐसा मानते हैं कि CAB के बाद अब उनकी नागरिकता पर कोई आंच आने वाला नहीं है। यह सोचने और मानने वालों की बड़ी भूल है। नागरिकता साबित करने के लिए कागजात तो सबको ही जमा करने होंगे। NRC में कागज़ पूरे ना होने की वजह अधिकांश रूप से ST, SC, OBC और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग ही विदेशी बताए जाएंगे। मुस्लिम समुदाय को तो घुसपैठिया करार देकर भारतीय नागरिक के सारे अधिकार समाप्त कर डिटेंसन सेंटर भेजा जाएगा। लेकिन जो दूसरे वर्ग के लोग है, जिनका नाम NRC में नहीं होगा। उनके अधिकार भी 6 साल के लिए छीन लिए जाएंगे।
अपने ही देश में 6 वर्षों तक शरणार्थी का जीवन बिताने के बाद जब नागरिक संशोधन अधिनियम 2019, जिसका आज जी जान लगा कर विरोध हो रहा है, के तहत उनको नागरिकता दी जायेगी तो उन्हें किस श्रेणी में रखा जायेगा। क्या उन्हें SC, ST या OBC आरक्षण की वह सारी सुविधाएं प्राप्त होंगी, जो पहले प्राप्त थीं। यह बड़ा प्रश्न है, जिसका उल्लेख संभवत: उस विधेयक में है ही नही।
इसलिए SC, ST और OBC वर्ग के सामाजिक, राजनैतिक नेताओं बुद्धिजीवी और शिक्षित वर्ग को चाहिए कि NRC और CAB को इस दृष्टिकोण से ही न देखे कि इससे सिर्फ मुस्लिम समुदाय ही प्रभावित हो रहा है। बल्कि अपने उन संवैधानिक अधिकारों को भी देखें जिसे उसको बाबासाहब डॉ भीमराव आंबेडकर जी ने कड़ी परिश्रम और आजीवन संघर्षों के बाद दिया था। जो लोग देश में बाबासाहब डॉ भीमराव आंबेडकर के सच्चे अनुयायी हैं, उन्हें यह मान लेना होगा कि बाबा साहब के लिखे संविधान पर हमला हुआ है। और संविधान पर हमला देश पर हमला है। इससे देश कमजोर हो जाएगा। हम अपने देश को कमजोर नही होने देंगे। हम बाबा साहब के संविधान को बचाएंगे।
(लेखक तीन दशकों से राजनीति में सक्रिय हैं, फ़िलहाल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया से जुड़े हुए हैं।)