क्योंकि न्यू इंडिया का मतलब ही है बेरोजगार इंडिया!

AKASH YADAV ON UNEMPLOYMENT OF YOUTH 1 090218

आकाश यादव, पत्रकार

लखनऊ, यूपी
युवाओं को बेरोजगार रखा ही इसीलिए गया है ताकि वे हिंसा और पकोड़े तलने के सिवा और कुछ कर ही न सकें??…

सच कहता हूँ मैने भी कभी नहीं सोचा था कि इस तरफ का नया भारत बनाने की बात अपने चुनावी भाषणों में मोदी जी किया करते थे। एक ऐसा भारत जहां सामाजिक भाई-चारा धीरे-धीरे आक्रामकता का रूप लेने लगेगा। एक ऐसा भारत जहां के शिक्षित युवाओं की मूलभूत व बुनियादी ज़रुरत को पूरा करने के बजाए उन्हें सांप्रदायिक हिंसा जैसी आग में धकेलने का काम किया जायेगा। एक ऐसा भारत जहां पर इन युवाओं को उनकी प्रतिभा के हिसाब से रोजगार देने के बजाये पकौड़ा तलने की नसीहतें दी जाएंगी। खैर आज के नये भारत की इस डरावनी तस्वीर को और भी ज्यादा विकराल रूप से पेश कर सकता हूँ पर फिर शायद असल मुद्दा कही पीछे छूट जायेगा।

चलिये एक वक्त तक तो मैं यह मान सकता था कि सरकार कही न कही देश में घटती नौकरियों को लेकर फिक्रमंद है। वो जानती है कि उसका 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा अभी तक अपने लक्ष्य से खोसों दूर है। पर फिर अचानक से प्रधानसेवक साहब का एक दिमाग को हिला देने वाला इंटरव्यू देश के सबसे बड़े स्वघोषित राष्ट्रवादी चैनल पर आता है। वे कहते हैं कि पकौड़ा बेचना भी एक रोजगार है। मानो कि लोगों के इस मजबूरी के काम का श्रेह भी वो खुद की सरकार के ही नाम दर्ज करना चाह रहे हों।

इसके कुछ रोज बाद ही आदृश्य गुजरात विकास मॉडल के सह-संस्थापक अमित शाह राज्य सभा में प्रधानसेवक के कथन पर अपनी स्वीकृति का ठप्पा लगा देते हैं। उल्टा एक कदम और भी आगे जाते हुए कहते हैं कि बेरोजगार होने से तो अच्छा है कि इस देश का युवा पकोड़े तले। ऐसे में लगता है कि सरकार येसब एक सोची_समझी राजनीति एवं रणनीति के तहत कर रही है। उसका मकसद ही है कि इस देश के युवाओं को रोजगार के नाम पर सिर्फ पकोड़े के ठेले खोलने का जुगाड़ करवाया जाए।

खैर… जब आप इस देश के युवाओं को रोजगार और नौकरियां देने के नाम पर सिर्फ जुमलों का गुलदस्ता देते हो तब आपकी कथनी और करनी के बीच का फर्क तो साफ_साफ दिख ही जाता है। इन आकड़ों से तो यही साबित होता है। केंद्र सरकार ने पिछ्ले दो सालों में सिर्फ 2.53लाख ही नौकरियां निकाली। इनमे से कितने पदों पर भर्ती पूरी कर जोइनिंग दिला दी गई हैं खैर ये तो एक सबसे बड़ी अनसुलझी गुत्थी है?? ये आकड़े खुद वित्त मंत्री जेटली जी ने बजट के दौरान पेश किये। आप समझ सकते हैं कि पिछ्ले दो सालों मे सिर्फ 2.53 लाख लेबर फोर्स केंद्र सरकार की जॉब से जुड़ी है या अभी भी प्रोसेस में है। बेरोजगारी दर पिछ्ले कई सालों में अपने सबसे निचले दर पर पहुंच चुकी है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया में बढ़ती बेरोजगारी दर के मामले में भारत सबसे ऊपर है। उसके अलावा ये बात भी अब किसी से नहीं छुपी है कि किस तरह सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर केंद्र सरकार में पिछ्ले 4 सालों से रिक्त पड़े पदों को समाप्त करने की दुस्साहसी पहल पहले ही कर दी है।

अब सोचिए कि ऐसे में इस देश की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा अखिर करेगा भी तो क्या? वो भटक रहा है और इस भटकाव का कारण सिर्फ और सिर्फ ये सरकार है। वो हिंसा की चपेट में आ रहा है। इन होनहारों का इस्तेमाल भगवाकरण के लिए किया जा रहा है। इनका इस्तेमाल सरकार की स्वार्थ पूर्ति के लिये किया जा रहा है। ये नेताओं की आमानवीय इच्छाओं को पूरी करने के लिए भेट चड़ रहे हैं। कलम पकड़ने वाले हाथों में तलवारे पकड़ाई जा रही हैं।

इसको ऐसे समझिये कि इन युवाओं की ऐसी पैकेजिंग की जा रही है कि ये नौकरियों से दूर एवं वंचित रहें ताकि इनका ध्यान इन्ही हिंसक गतिविधियों में रम जाये क्योंकि अगर इतनी विशाल मैनफोर्स रोजगार में आ गई या लग गयी तो ऐसी हिंसक घटनाएं अपने आप होनी बंद हो जायेंगी पर तब इस पार्टी का धंधा भी तो चलना बंद हो जायेगा। “आप देखिएगा कि वो दिन दूर नहीं जब इस नए भारत का युवा रोजगार की मांग करेगा तब उसे ये कहते हुए शांत करा दिया जाएगा कि ऐसी मांग करके वो राष्ट्रद्रोह का पाप कर रहा है।”
#क्या_यही_है_न्यू_इंडिया ???

(आकाश यादव युवा पत्रकार हैं और लखनऊ में एक मीडिया संस्थान से जुड़े हैं। वे तमाम मुद्दों पर बेबाकी से लिखते हैं।)