लखनऊ, यूपी
राज्य में विधान सभा चुनाव में इस बार साफ छवि बनाम दागदार छवि का मुद्दा भी छाया हुआ है। चुनाव में तमाम मुद्दों के साथ ये मुद्दा गरमाने से कई सियासी दलों और उम्मीदवारों की नींद हराम हो गई हैं। चुनाव शपथ पत्र पर रिसर्च करने वाली वाली संस्था एडीआर ने पहले चरण की की रिपोर्ट में बीजेपी के उम्मीदवारों को सबसे ज़्यादा दागदार बताया था।
राजधानी लखनऊ एक मामले में रिकार्ड काफी अच्छा रहा है। दरअसल यहां अपराधिक और दागदार रिकार्ड वाले उम्मीदवारों को चुनाव में ज़्यादातर हार का सामना करना पड़ा है। एक दो अपवाद को छोड़ दे तो यहां हमेशा साफ छवि के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। राजधानी लखनऊ की सीट सभी दलों के लिए प्रतिष्ठा बन गई है। इस सीट पर साफ छवि बनाम दागदार छवि के मुद्दे ने कई उम्मीदवारों के चेहरे पर परेशानी का बल डाल दिया है। बात अगर लखनऊ मध्य की हो तो यहां सपा और बीजेपी के उम्मीदवार पर कई केस दर्ज हैं।
मारूफ खान की साफ छवि
कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे मारूफ खान की छवि साफ सुथरी रही हैं। वो अपनी साफ छवि के बल जनता से समर्थन मांग रहे हैं और उन्हें इस मुद्दे पर जनता का समर्थन भी मिल रहा है। मारूफ खान ने दागदार छवि का मुद्दा बड़े ज़ोर-शोर से उछाला है। मारूफ खान जनता के बीच जाकर ये संदेश दे रहे हैं कि उनकी राजनीति पारी हमेशा साफ सुथरी रही है। उनके ऊपर किसी भी किस्म का कोई केस नहीं है। वो दूसरे दलों के उम्मीदवारों के शपथ पत्र का हवाला भी जनता को दे रहे हैं। मारूफ खान ने साफ छवि बनाम दागदार छवि को इस विधान सभा में बड़ा मुद्दा बना दिया है। चुनाव के दिन ये मुद्दा ज़रूर असर डालेगा।
रविदास मेहरोत्रा पर कई मामले
लखनऊ मध्य सीट से कैबिनेट मंत्री और यहां से मौजूदा विधायक रविदास मेहरोत्रा सपा के टिकट के पर किस्मत आज़मा रहे हैं। रविदास के ऊपर कुल 13 केस दर्ज हैं। इनमें पिछले दिसंबर में लखनऊ के एसीजेएम ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने एक क्रिमिनल केस में पिछले कई सालों से गैरहाजिर चल रहे रविदास मेहरोत्रा को भगोड़ा घोषित कर दिया था। साथ ही उनके खिलाफ एक बार फिर से गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आदेश दिया था। उस समय मेहरोत्रा सूबे की सपा सरकार में मंत्री थे। नामांकन के दौरान रविदास मेहरोत्रा पर बिजली बिल का बकाया भी था जिसे उन्होंने अपने शपथ पत्र में नहीं लिखा था। इस मामले में दूसरे उम्मीदवारों ने शिकायत दर्ज कराई थी। रविदास के खिलाफ कई अन्य मामले भी दर्ज हैं। इस मुद्दे के उनकी पार्टी के ही कुछ नेता बड़े ज़ोर-शोर से उठा रहे हैं।
ब्रजेश पाठक पर भी कई मामले
बीजेपी से चुनाव लड़ रहे ब्रजेश पाठक पहले बीएसपी में थे। ऐन चुनाव से कुछ महीने पहले वो बीजेपी में शमिल हुए हैं। ब्रजेश पाठक ने अपने हलफनामे में एक केस बताया है। अगर पिछले रिकार्ड की बात करें तो उनका पहले आपराधिक रिकार्ड रहा है। ब्रजेश पर पहला केस लखनऊ के हसनगंज थाने में साल 1989 में धारा-364, 147, 148 व 353 के तहत दर्ज हुआ था। दूसरा केस भी इसी थाने में साल 1991 में धारा-147, 427, 336, आम्र्स एक्ट और जानलेवा हमले का दर्ज कराया गया था। इनके अलावा साल 2014 में लोक सभा चुनाव के दौरान मतदाताओं और चुनाव कर्मियों को धमकाने का केस उन्नाव के सदर थाने में दर्ज कराया गया था। ब्रजेश पर दिल्ली प्रेस क्लब में एक एडिटर और कैमरामैन पर 23 अगस्त की शाम हमला करने का भी आरोप है। एडिटर द्वारा ब्रजेश पाठक के खिलाफ दिल्ली के थाने में शिकायत दर्ज कराई है।
बीएसपी से राजीव श्रीवास्तव
वैसे तो इस सीट पर बीएसपी ने कभी जीत दर्ज नहीं की है लेकिन इस बार बीएसपी उम्मीदवार राजीव श्रीवास्तव चुनाव में किस्मत आज़मा रहे हैं। राजीव ने नामांकन के दौरान जो हलफनामा दिया है उनमें अपने ऊपर की दर्ज नहीं बताया है। वो बीएसपी के वोट बैंक और जातिगत समीकरण से चुनाव में लगे हैं।
इस विधान सभा में कई छोटे दलों के उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में डटे हैं। इनमें कई पर केस भी दर्ज है। इनमें श्याम सोनकर के हलफनामें के मुताबिक उसपर तीन केस दर्ज है। दरअसल इन उम्मीदवारों ने ताल भले ही थोकी हो लेकिन चुनाव मैदान में इनका समर्थन कहीं दिखाई नहीं दे रहा है।