अहमदाबाद, गुजरात
लव जिहाद के नाम पर लगातार दर्ज हो रहे मुकदमे के मामले में अदालत ने बड़ी टिप्पणी की है। गुजरात में ‘लव जिहाद’ को लेकर बने कानून पर हाईकोर्ट ने साफ किया है कि केवल शादी के आधार पर ही मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने इस दौरान गुजरात धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम की कुछ धाराओं में हुए संशोधनों को लागू करने पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने गुजरात धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम से जुड़ी एक याचिका में सुनवाई के बाद राज्य सरकार को नोटिस भेजा था।
गुरुवार को गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि अंतर-धार्मिक विवाह के मामले में केवल शादी को ही एफआईआर का आधार नहीं बनाया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि बगैर यह साबित हुए कि शादी जोर-जबरदस्ती से हुई है या लालच से हुई है, पुलिस में एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है। कोर्ट की तरफ से अधिनियम की धारा 3, 4, 5 और 6 के संशोधनों को लागू करने पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं।
एजेंसी की खबरों के मुताबिक गुजरात हाईकोर्ट ने शादी के ज़रिए जबरन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण को निषेध करने वाले एक नए कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर बीती 6 अगस्त को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। मुख्य न्यायाधीश विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था और मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को निर्धारित कर दी थी।
गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 के खिलाफ याचिका पिछले महीने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात शाखा ने दायर की थी। इस अधिनियम को 15 जून को अधिसूचित किया गया था। वर्चुअल सुनवाई के दौरान, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर जोशी ने कहा कि संशोधित कानून में अस्पष्ट शर्तें हैं जो विवाह के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं और संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित धर्म के प्रचार, आस्था और अभ्यास के अधिकार के खिलाफ हैं।