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12 Oct 2024, Sat

मुसलमानों की रक्षा करे भारत सरकारः ओआईसी

इस्लामिक देशों के संगठन ‘ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन’ (OIC) ने भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा पर गंभीर चिंता जताई है. भारत ने इसे अंदरूनी मामलों में दखल बताया है.ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) ने संयुक्त राष्ट्र और पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए कदम उठाए जाएं. भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा पर चिंता जताते हुए ओआईसी ने हाल ही में हरिद्वार में हुई धर्म संसद का जिक्र किया, जहां कथित तौर पर हिंदू नेताओं द्वारा मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान किया गया था. साथ ही, कर्नाटक में मुस्लिम छात्रों को हिजाब पहनने से रोकने और सोशल मीडिया पर मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अभद्रता पर भी चिंता जताई गई है. भारत से अपील ओआईसी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, “मुसलमानों और उनके धर्मस्थलों पर लगातार होते हमले, विभिन्न राज्यों में लाए जा रहे मुस्लिम-विरोधी कानून और संरक्षण प्राप्त हिंदुत्व संगठनों निराधार आरोप लगाकर द्वारा मुसलमानों पर हमले इस बात का संकेत हैं कि इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है.” एक काली दुनिया का झरोखा भर हैं 'बुल्ली बाई, सुल्ली डील्स' ओओईसी ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों, खासकर मानवाधिकार काउंसिल से इस बारे में जरूरी कदम उठाने का आग्रह किया है. संगठन ने भारत से अपील की है कि मुस्लिम आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और उन्हें उनके जीवन जीने के तरीकों को मानने की आजादी मिले. साथ ही ओआईसी ने भारत से यह आग्रह भी किया है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरती अपराधों और हिंसा को अंजाम देने वालों को सजा सुनिश्चित हो.

भारत का जवाब ओआईसी के बयान पर भारत ने कड़ा ऐतराज जताया है. भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक बयान जारी कर कहा, “हमने देखा है कि भारत से जुड़े एक मामले पर जनरल सेक्रेटेरिएट ऑफ ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन ने एक गुमराह करने वाला और अभिप्रेरित बयान दिया है.” बागची ने कहा कि ओआईसी की सोच ही सांप्रदायिक है. उन्होंने कहा, “भारत में समस्याओं को लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर संवैधानिक तरीकों से देखा-समझा और सुलझाया जाता है. ओआईसी सेक्रेटेरिएट की सांप्रदायिक सोच इन मूल्यों को नहीं समझ सकती. ओआईसी पर अपने निहित उद्देश्यों से भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने वाले बदमाश तत्वों का कब्जा बना हुआ है.” भारत में स्थिति हाल के दिनों में भारत में हुईं कई गतिविधियों की अंतरराष्ट्रीय समुदाय में खासी चर्चा हुई है. पहले हरिद्वार में हुई धर्म संसद में मुसलमानों के नरसंहार की अपील और उसके बाद एक ऐप बनाकर उस पर मुस्लिम महिलाओं की नीलामी की कोशिश जैसी घटनाओं की तीखी अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई है. जेनोसाइड वॉच नामक संस्था के संस्थापक ग्रेगरी स्टैंटन ने कहा कि उन्हें भारत में बड़े नरसंहार के पूर्व लक्षण नजर आ रहे हैं.

स्टैंटन ने ही 1990 के दशक में रवांडा में नरसंहार की चेतावनी दी थी. भारत के बारे में ग्रेगरी स्टैंटन ने पिछले महीने अमेरिकी संसद को बताया, “हम मानते हैं कि हरिद्वार में हुई बैठक का असली मकसद नरसंहार को भड़काना ही था. जेनोसाइड कन्वेंशन के तहत नरसंहार को भड़काना एक अपराध है, और भारत में भी यह गैरकानूनी है. कानून का पालन होना चाहिए.” उन्होंने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हिंसा के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोला है. स्टैंटन ने कहा, “हरिद्वार की बैठक में मुसलमानों के खिलाफ जो भाषा प्रयोग की गई, वह अल्पसंख्यक समुदाय का अमानवीयकरण करती है और ध्रुवीकरण पैदा करती है, जो नरसंहार के लिए हालात पैदा करते हैं.” ‘घातक होता इस्लामोफोबिया' अंतरराष्ट्रीय विचारक प्रोफेसर नोम चोम्स्की ने भी हाल ही भारत में हालात को चिंताजनक बताया था. उन्होंने कहा था कि इस्लामोफोबिया यानी मुसलमानों के खिलाफ नफरत भारत में सबसे घातक रूप ले चुकी है. इंडियन अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में वीडियो संदेश द्वारा प्रोफेसर चोम्स्की ने कहा, “इस्लामोफोबिया के लक्षण पूरे पश्चिम में बढ़ रहे हैं लेकिन भारत में यह सबसे घातक रूप ले चुका है.

दक्षिण एशिया में हालात खासतौर पर चिंताजनक हैं लेकिन जो हो रहा है, उसकी वजह से नहीं बल्कि जो नहीं हो रहा है उसकी वजह से.” स्टैटिस्टा वेबसाइट के मुताबिक भारत में सितंबर 2015 से नवंबर 2019 नफरत के कारण हुए 902 अपराध दर्ज किए गए थे. इनमें से 619 दलितों के खिलाफ थे जबकि 196 मामलों में पीड़ित मुसलमान थे. भारत में अपराधों के आंकड़े जुटाने वाली संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 2017 के बाद से किसानों की आत्महत्याओं और धार्मिक हिंसा के आंकड़े जमा करना बंद किया है. इसके अलावा नफरत के कारण होने वालो अपराधों का भी कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता. इस कारण ऐसे अपराधों का कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. दुआ में भी साजिश देखने वाली यह सोच समाज को ही फूंक रही है.