नागरिकता संशोधन बिल सोमवार में लोकसभा से पास कर दिया गया। इस बीच बिल के विरोध में 1000 भारतीय वैज्ञानिक और स्कॉलर्स ने मोर्चा खोल दिया है। देश विदेश के भारतीय वैज्ञानिक और स्कॉलर्स ने ऑनलाइन अभियान पर हस्ताक्षर कर बिल के विरोध में आवाज उठाई है। इसमें कहा गया है कि यह बिल संविधान की मूलभूत बातों का उल्लंघन करता है। वैज्ञानिक और स्कॉलर्स का कहना है कि नागरिकता देने के लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
इस ऑनलाइन अभियान पर 24 घंटे के भीतर ही करीब 1000 लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। इसमें जवाहारलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से लेकर टोरंटो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक और स्कॉलर्स शामिल हैं। इस ऑनलाइन अभियान में कहा गया है कि ‘इस बिल में हिन्दुओं, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को नागरिकता दी जाएगी जो कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से संबंधित होंगे। इस बिल में कहा गया है कि ये वे लोग होंगे जो कि धार्मिक पताड़ना सह रहे होंगे। यह सरकार का अच्छा कदम है लेकिन यह धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकता प्रदान करता है।
आजादी के बाद जो संविधान लिखा गया उसमें सभी धर्मों के लोगों के साथ समान व्यवहार की बात कही गई है। बिल में धर्म को आधार बनाकार नागरिकता देने की बात कही गई जो कि संविधान की मूल संरचना के साथ असंगत होगा। बिल में मुस्लिम समुदाय को बाहर रखना देश के बहुलवादी समाज पर असर डालेगा। ऐसे में कानून के जानकारों को यह तय करना होगा कि क्या यह बिल संविधान का उल्लंघन कर रहा है या नहीं। लेकिन जहां तक हमें महसूस होता है इससे संविधान का उल्लंघन हो रहा है।
गृह मंत्री अमित शाह ने बिल को ऐतिहासिक करार देते हुए सोमवार को कहा कि यह बीेजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में देश के 130 करोड़ लोगों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाकर इसकी मंजूरी दी है। इस दौरान शाह ने कहा कि इस बिल के जरिए अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव नहीं किया जा रहा।