केंद्र व उत्तर प्रदेश (यूपी) की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। कहा जा रहा है कि इस बार भाजपा का फोकस राज्य के मुस्लिम मतदाताओं पर भी होगा। इसी को देखते हुए भाजपा ने राज्य में कई सरकारी योजनाओं के जरिए मुस्लिम समुदाय से जुड़ने का फैसला किया है। तमाम योजनाओं के जरिए भाजपा पसमांदा मुसलमानों से जुड़ना चाहती है। देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूहों में पसमांदा मुसलमान सबसे पिछड़े हैं। अभी तक इन मुस्लिम मतदाताओं का रुझान ज्यादातर गैर-बीजेपी पार्टियों की तरफ ही रहा है।
यूपी विधानसभा चुनावों से पहले किया था प्रयोग
यूपी सरकार ने यह फैसला हाल ही में संपन्न हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक के बाद लिया। इस महीने की शुरुआत में हैदराबाद में हुई बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘तुष्टीकरण नहीं तृप्तिकरण’ का संदेश दिया था। भाजपा ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले इसी तरह का एक छोटा प्रयोग किया था। उसकी सफलता के बाद, पार्टी अब आक्रामक रूप से पसमांदा मुसलमानों के बीच अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को लुभाने के लिए तैयार है।
विधानसभा चुनावों के दौरान, राज्य भाजपा महासचिव (संगठन) सुनील बंसल ने मुसलमानों को किसी विशेष पार्टी को एकतरफा वोट देने से रोकने के लिए खास रणनीति बनाई थी। उन्होंने पार्टी के नेताओं को धोबी, नाई, कसाई और लोहार जैसी विभिन्न प्रकार की सेवा कार्यों में लगे पसमांदा मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को लुभाने का काम सौंपा था। पार्टी के रणनीतिकारों ने मलिक (तेली), मोमिन अंसार (जुलाहा), कुरैशी (कसाई), मंसूरी (धुनिया), इदरीसी (दर्जी), सैफी (लोहार), सलमानी (नाई) और हवारी (धोबी) सहित इस समूह के बीच “बड़ी संभावना” देखी है।
10,000 सामुदायिक वोट हासिल करने का टारगेट
पार्टी के एक नेता ने बताया, “पश्चिम यूपी में, पार्टी ने अपने कैडर को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 10,000 सामुदायिक वोट हासिल करने का जिम्मा सौंपा है। इसके अलावा प्रत्येक बूथ पर दो पसमांदा मुसलमानों को तैनात किया है। इसके अलावा समुदाय के ऐसे सदस्यों की पहचान की जा रही है जिन्हें सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से लाभ हुआ था। पार्टी उनसे संपर्क कर रही है। एक छोटी ‘मुस्लिम लाभार्थी बैठक’ भी आयोजित की गई थी। बैठक यह समझाने के लिए की गई थी कि कैसे केवल भाजपा सरकार ही उनकी किस्मत बदल सकती है। हमारा मानना है कि जिन सीटों पर करीबी मुकाबला देखने को मिला था वहां इस समुदाय ने चुपचाप बीजेपी की मदद की।” भाजपा के पश्चिमी यूपी के अल्पसंख्यक विंग प्रमुख जावेद मलिक इस बात से सहमत दिखते हैं।
वे कहते हैं, “हमने कैडर को प्रत्येक बूथ पर कम से कम 20 सामुदायिक वोट सुनिश्चित करने का काम सौंपा था। मुझे लगता है कि पार्टी को लगभग 7 से 8 प्रतिशत सामुदायिक वोट मिले। इनमें से ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं थीं जो ‘तीन तलाक’ को खत्म करने के फैसले के कारण भाजपा के प्रति नरम थीं। इसके अलावा पसमांदा समाज का वोट भी मिला जिन्हें विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से लाभ हुआ था।
मुस्लिमों ने की भाजपा की मदद
जावेद मलिक अखिल भारतीय पसमांदा मंच के प्रमुख भी हैं। वे कहते हैं, “पश्चिम यूपी में धामपुर, नहतौर, मुरादाबाद (शहर), बिजनौर (सदर), बड़ौत और बिलासपुर जैसे लगभग सात निर्वाचन क्षेत्र थे, जहां इस समूह के समर्थन ने हमें कई सीटें जीतने में मदद की। इन सीटों पर जीत का अंतर 200 और 700 वोटों के बीच था।
अभी तक यूपी विधानसभा के 34 मुस्लिम विधायकों में से 30 पसमांदा समाज से हैं। 1965 के युद्ध नायक और परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद एक पसमांदा (इदरीसी) मुस्लिम थे। 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, भाजपा सरकार इस मुस्लिम आइकन को लोकप्रिय बनाने की योजना पर काम कर रही है।
अब्दुल हमीद पर फोकस करेगी भाजपा
भाजपा के एक नेता ने कहा, “हमें मुस्लिम विरोधी बताकर टारगेट किया जाता है। लेकिन हम अब्दुल हमीद का जिक्र करते हुए उनके नाम से पहले हमेशा ‘वीर’ लगाते हैं। हमने हमेशा पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम की प्रशंसा की है। वे भी इसी समुदाय के थे। अब, हम समुदाय के इस वर्ग पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगे।” 33 वर्षीय दानिश आजाद अंसारी को राज्य मंत्री बनाकर भाजपा ने पसमांदा समुदाय को एक संदेश दिया है। दानिश आजाद को शिया मुस्लिम और राज्य हज समिति के वर्तमान अध्यक्ष मोहसिन रजा की जगह मंत्री बनाया गया था।
पसमांदा मुसलमानों के बीच पार्टी की आउटरीच योजना का हिस्सा एक भाजपा नेता ने कहा, “किसी भी उच्च जाति के मुसलमान से बात करोगे तो वे आपको बताएंगे कि उनमें कोई जातिगत पूर्वाग्रह नहीं है। लेकिन, जिस तरह से आजाद को मंत्री बनाए जाने के तुरंत बाद, कुछ उच्च जाति के मुसलमानों ने सोशल मीडिया पर “जुलाहा” जैसी जातिवादी गालियां दीं। यह समुदाय में जातिगत दरार को दर्शाता है। सच तो यह है कि 15% समुदाय ने बाकियों की आवाज और अधिकारों को हाईजैक कर लिया है। हम इसे ठीक करने के लिए निकले हैं।”
लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग की प्रोफेसर मनुका खन्ना ने कहा, “यह एक चतुर राजनीतिक कदम है क्योंकि सबसे पिछड़े लोगों से जुड़कर, भाजपा रूढ़ियों को तोड़ने और नई जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है। यह गरीब मुसलमानों के बीच नया समर्थन आधार बनाने की कोशिश कर रही है।”