बाराबंकी, यूपी
ज़िले में अतिक्रमण के नाम पर प्रशासन ने 100 साल पुरानी मस्जिद को शहीद कर दिया गया। इसके बाद मुस्लिम संगठनों व सियासी पार्टियों ने इसे योगी सरकार का सांप्रदायिक क़दम बताया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मस्जिद को शहीद करने को दुर्भागपूर्ण बताया है और कहा है की सरकार मस्जिद के मलबे को मौक़े से हटाने की कार्रवाई को रोककर और ज्यों की त्यों हालत बरकरार रखे।
सेन्ट्रल सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने मस्जिद के पुनःनिर्माण के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने का फ़ैसला लिया है। प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने कहा है की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के 2021 चुनावों से पहले प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना चाहती है।
क्या है मामला
बाराबंकी ज़िले के रामसनेही घाट के तहसील परिसर में बनी मस्जिद को स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने सोमवार को ढहा दिया। क़रीब एक सदी पुरानी मस्जिद ”गरीब नवाज़” के ढहाने की खबर पूरे जंगल में आग की तरह फैल गई। इसके बाद फैले तनाव को देखते हुए मंगलवार की सुबह से वहाँ भारी पुलिस बल तैनात है। स्थानीय प्रशासन इलाक़े में अभी दुकानों को खुलने नहीं दे रहा है। एसडीएम और सीओ मुस्लिम समुदाय से मिलकर के शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं।
कोर्ट में है मामला
मुस्लिम समुदाय का कहना है कि रामसनेही घाट के उप-जिलाधिकारी ने मस्जिद प्रबंधन कमेटी से मस्जिद की भूमि के दस्तावेज़ मांगे थे। प्रशासन के नोटिस के खिलाफ प्रबंधन कमेटी ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। अदालत ने कमेटी को 18 मार्च से 15 दिन के अंदर जवाब दाखिल करने की मोहलत दी थी। जिसके बाद 01 अप्रैल, को जवाब दाखिल कर दिया गया था। इस नोटिस के विरोध में लोगों ने कई दिनों तक मुस्लिम समुदाय ने प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी किया था। उस समय ज़िला प्रशासन ने मस्जिद की मीनार से माइक हटाने की भी कोशिश की थी। विरोध के दौरान कुछ लोगों ने पथराव भी किया, जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों लाठीचार्ज किया जिसमें कई लोग घायल हो गए थे। बाद में कई लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज करके उनको जेल भी भेजा गया।
मस्जिद कमेटी का दावा
मस्जिद कमेटी का दावा है कि उनके पूर्वज इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ते आ रहे थे। मस्जिद में पाँच वक़्त की अज़ान भी होती थी। लेकिन जुमे के दिन नमाज़ में भीड़ ज़्यादा होती थी। जिस से प्रशासनिक अधिकारियों में नाराज़गी रहती थी। आरोप है इसी नाराज़गी के चलते ग़ैरक़ानूनी ढंग से मस्जिद ढहाने की कार्यवाही की गई है। कमेटी के पदाधिकारियों का कहना है कि नया तहसील परिसर का निर्माण 1992 में हुआ था और समय एसडीएम आवास इस मस्जिद के निकट बनाया गया। जबकि इस से पुराना तहसील भवन मस्जिद के पीछे हुआ करता था। सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का कहना है की 100 साल पुरानी मस्जिद गरीब नवाज़ जो कि तहसील वाली मस्जिद के नाम से मशहूर थी, सरकारी दस्तावेज़ो में दर्ज है।
वक्फ बोर्ड नाराज़
सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ज़ुफ़र फ़ारूक़ी ने कहा कि वह मस्जिद को ग़ैरक़ानूनी ढंग से ढहाने की कार्यवाही में चुनौती देंगे। उन्होंने कहा है कि प्रशासन ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है। ज़ुफ़र फ़ारूक़ी के अनुसार मस्जिद का कोविड-19 महामारी के दौरान ढ़ाना अदालत की अवमानना है। उनके अनुसार उच्च न्यायालय ने 24 अप्रैल को कोविड-19 महामारी को देखते हुए सभी तरह निष्कासन, बेदखली और तोड़-फोड़ प्रक्रिया पर 31 मई तक रोक लगा रखी है।