डॉ अशफाक अहमद
लखनऊ, यूपी
बात करते हैं आज़मगढ़ की मुबारकपुर सीट से चुनाव लड़े शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली की। मजलिस ने उन्हें टिकट देकर मैदान में उतारा है। वो ऐन मौके पर मजलिस में शामिल हुए थे। मजलिस को पूरे प्रदेश में सबसे ज़्यादा उम्मीद इसी सीट पर है। खैर… चुनाव का रिजल्ट जो भी हो उस तो चर्चा बाद में होगी। फिलहाल उनके चुनाव लड़ने के तरीके और चुनाव से पहले उनके फैसले पर करते हैं।
दो बार के विधायक
गुड्डू जमाली ज़िले की मुबारकपुर सीट से बीएसपी से दो बार विधायक रहे है। बीएसपी ने 2014 में उन्हें मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मैदान में उतारा था। तक वो 2,66,528 वोट पाकर तीरे स्थान पर थे। इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 3,40,306 और दूसरे नंबर पर रहे रामातकांत यादव को 2,77,102 वोट मिले थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में वो 70,705 वोट पाकर सपा के अखिलेश यादव से सिर्फ 688 वोट से जीते थे।
बीएसपी छोड़ी
गुड्डू जमाली ने 25 नवंबर, 2021 को बीएसपी छोड़ने का एलान किया। जब उन्होंने पार्टी छोड़ी तो वे विधानसभा में विधायक दल के नेता थे। इस दौरान बीएसपी के कई विधायक पार्टी छोड़ रहे थे। उनके इस्तीफे के बाद सबके ये लग रहा था कि वो सपा में जाएंगे। पार्टी छोड़ने के तीसरे दिन ही वो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिले। उनके समर्थकों ने खूब हल्ला किया कि उन्हें सपा टिकट देगी। उनकी अखिलेश यादव से उनकी दोबारा मुलाकात हुई पर अंतिम समय तक वो पार्टी में शामिल तक न हो पाए। वो लगातार टिकट के लिए दौड़ लगाते रहे। इसी बीच सपा ने मुबारकपुर सीट से अखिलेश यादव के टिकट का एलान करके उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
गुड्डू जमाली के फैसले पर सवाल
दो बार बीएसपी से विधायक होने के बाद भी मुझे उनके बीएसपी छोड़ने से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात और मजलिस के टिकट पर चुनाव लड़ने तक कई लूप होल दिखाए दिए। इसकी चर्चा कई लोगों से मैं लगातार करता रहा। जब गुड्डू जमाली अखिलेश यादव से मिले तो उन्हें लगा कि मामला फिट हो गया है। उन्होंने आज़मगढ़ के जिला संगठन और स्थानीय नेताओं को बिल्कुल नज़रअंदाज किया। मेरी बात आज़मगढ़ ज़िला संगठन से जुड़े एक महत्वपूर्ण पदाधिकारी से हुई तो वो भड़क गए। कहने लगे कि ऐसे टिकट नही मिलता। कम से कम हम लोगों से भी तो बात करते। ये लाइन ही इशारा कर रही थी कि ज़िला संगठन पूरी तरह से खिलाफ था। वो ज़िले के सपा के कद्दावर नेताओं से भी सामंजस्य नहीं बैठा पाए।
मजलिस से बने उम्मीदवार
मजलिस में शामिल होने के बाद गुड्डू जमाली मुबारकपुर से उम्मीदवार बने। गुड्डू जमाली ने जनसभाओं में सपा में शामिल होने के कई किस्से सुनाए। उन्होंने खुद को मज़बूत की जगह कमज़ोर तरीके से पेश किया। उन्होंने अपने भाषण में कई जगह सपा और अखिलेश को निशाना बनाया, जबकि वो सपा में शामिल भी नही हुए थे। वे दूसरे दलों पर बहुत कम हमलावर रहे। ऐसा लगा कि वो सिर्फ विक्टिम बनकर एक वर्ग का वोट ही हासिल करना चाहते थे। उनके लिए पार्टी के अध्यक्ष असदुदीदीन ओवैसी ने भी कई जनसभाएं की। पार्टी तो उनके साथ खड़ी रही पर गुड्डू जमाली में मुझे वो इनर्जी नहीं दिखी जिसकी ज़रूरत थी।
सपा का गढ़
आज़मगढ़ ज़िले में सपा का वर्चस्व रहा है। साथ ही यहां मुस्लिमों का एक बड़ा हिस्सा वोट के तौर पर सपा में जाता रहा है। बीएसपी, कांग्रेस के साथ कुछ वोट प्रतिशत बीजेपी के साथ भी दिखाई देता रहा है। अपनी सीट पर गुड्डू जमाली अपने आप को विकल्प के तौर पर पेश नही कर पाए, बल्कि वो विरोध का वोट बटोरने की कोशिश करते रहे। अमूमन इस इलाके में मुस्लिमों का एक हिस्सा हमेशा बीजेपी के साथ सपा, बीएसपी और कांग्रेस का विरोध करता रहा है। ये कभी नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी, तो कभी राष्ट्रीय उलेमा कोंसिल, तो कभी मजलिस के साथ नज़र आता है। पर विरोध करने वाला ये वोट का हिस्सा अब तक इतना नही रहा कि वो जिले की किसी सीट पर अपने उम्मीदवार को जीत दिला सके। अलबत्ता कुछ एक सीटों पर ये हराने की कूवत ज़रूर रखता रहा है।
अन्त में…
मेरी नज़र में शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली यूपी में मजलिस का भविष्य हो सकते हैं। उनके पास एक पार्टी को चलाने, संगठन बनाने, लोगों को जोड़ने और चुनाव लड़ने का अनुभव तो है ही, साथ ही वो धनबल भी हैं। दूसरी तरफ उनके कई करीबियों को ये लगता है कि चुनाव के कुछ दिन बाद शायद वो कुछ नया निर्णय ले सकते हैं या फिर नया ठिकाना तलाश कर सकते हैं। गुडडू जमाली बिजनेसमैन पहले और बाद में नेता बने हैं। वे अपना नफा नुकसान बखूदी जानते होंगे। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि गुड्डू जमाली चुनाव के बाद कौन सी राह चुनते हैं।