राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले में एक गांव में मुस्लिम समाज ने एक अनूठी पहल की है। शादियों में हो रहे अनावश्यक खर्चों और सामाजिक कुरीतियां रोकने के लिए समाज के लोगों ने गांव के ही 50 जोड़ों का सामूहिक निकाह करवाया। एक ही पांडाल में हुए इस निकाह में शामिल सारे जोड़े एक ही गांव के थे। पूरे आयोजन का खर्चा भी सामूहिक हिस्सेदारी से उठाया गया। जिन जोड़ों की शादी हुई, उनमें से अधिकांश के परिवार किसान अथवा मजदूर वर्ग के हैं। आस-पास के दर्जनों गांवों के हजारों लोग इस कार्यक्रम के गवाह बने। सामूहिक विवाह का यह आयोजन भारत-पाक सीमा पर महल 5 किलोमीटर पहले बसे हरपालिया गांव में आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के आयोजक और हरपालिया के सरपंच सच्चू खान ने बताया कि कुछ समय पहले पीर साहब सैय्यद नुरुल्लाह शाह बुखारी ने सामूहिक निकाह के इस कार्यक्रम की योजना बनाई। सच्चू खान ने बताया कि कार्यक्रम के पीछे पीर साहब का मकसद शादी में अनावश्यक खर्च और दिखावे सहित बढ़ती कुरीतियों को रोकने की पहल करना है। उन्होंने कहाकि मौजूदा समय में लोग शादियों में दिखावे के लिए अनावश्यक खर्च करते हैं। गरीब तबके के लोग भी देखा-देखी के चलते ऐसा करने से मजबूर होते हैं। इससे कई परिवार बर्बाद हो रहे थे। खान ने कहा कि इस स्थिति को देखते हुए पीर साहब ने यह पहल की।
पूरी सादगी के साथ हुआ आयोजन
खान ने बताया कि इस आयोजन के दौरान 50 मिनट में 50 जोड़ों का निकाह हुआ। उन्होंने कहाकि कार्यक्रम पूरी सादगी के साथ हुआ। इसके समाज के सभी लोगों ने सामूहिक जिम्मेदारी लेते हुए अपनी भागीदारी की। खान ने कहा कि यह अपने तरह का पहना आयोजन है और इस तरह के आयोजन एक नजीर पेश करेगें और इससे अनावश्यक खर्च और दिखावे की कमी आएगी और सम्मानजनक माहौल बनेगा। उन्होनें कहा कि इससे लोगों को सीख मिलेगी और दूसरे समाज भी इस पद्धति को अपनाएंगे।
लोगों ने उठाया कार्यक्रम का खर्च
सच्चू खान ने बताया कि पीर साहब से चर्चा करने के बाद जब उन्होंने गांववालों के साथ इस आयोजन की चर्चा की। इसके बाद सभी लोग तैयार हो गए। उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में उनके पास 30 से 35 जोड़ों के निकाह की मंजूरी मिली। लेकिन जैसे-जैसे कार्यक्रम नजदीक आया, यह आंकड़ा बढ़कर 50 जोड़ों तक पहुंच गया। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम के लिए कई परिवारों ने अपनी इच्छा से आर्थिक सहयोग दिया।
किसान और मजदूर वर्ग के अधिकांश परिवार
आयोजकों ने बताया कि कार्यक्रम के अधिकांश परिवार किसान और मजदूर वर्ग के हैं। यह लोग आज के जमाने के महंगे आयोजनों का भार नहीं उठा सकते। उन्होंने बताया कि कई लोग गांव में ही खेती किसानी करते है, तो कुछ गुजरात में मजदूरी करते हैं। उन्होंने बताया कि गांव के बच्चल खान गांव में ही खेती करते हैं तो वाहेद खान गुजरात में मजदूरी। ऐसे और भी कई लोग हैं। आयोजकों ने बताया कि गांव में ऐसे कई लोग थे जिन्हें अपनी आर्थिक स्थिति के चलते अपने बच्चों के निकाह की बड़ी चिंता थी।